हम प्रतिदिन आचार्य श्री, दीदी जी, भैयाजी के विचारों को सुनते हैं, हमारे विचार में सब कुछ है, परन्तु वह सब आचरण में नहीं आ पाता है, हम सब कुछ जानने की कोशिश करते हैं पर आचरण में नहीं ला पाते, उसके लिए हमें उसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
आचरण में लाने के लिए बार-बार भावना भानी चाहिए और कुछ संकल्प लेना चाहिए। संकल्प से सिद्धि होती है, ज्ञान हमारे पास बहुत है, चाहता भी है मन, लेकिन जब तक हम उसके लिए संकल्पित नहीं होगे, तब तक आचरण में नहीं आएगा और केवल संकल्पित होने से काम नहीं होगा, संकल्पित होने के बाद जो संकल्प हमने लिए है, उसके संकल्प के उद्देश्य को बार-बार दोहरायें, उसकी भावना भायें, तब उसमे स्थिरता आएगी। जो बहुत सारे लक्ष्य बनाते हैं वो कभी सफल नहीं हो सकते, एक लक्ष्य ही होना चाहिए। हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए कि हमें अपने जीवन को सार्थक बनाना है। यह सब से बड़ा लक्ष्य है और जीवन को सार्थक बनाने के लिए जो भी हमारे जीवन में बाधक् कारण हैं, हमें उनसे बचना है, प्रतिज्ञा पूर्वक बचना है, बुराइयों से बचना है, अपने जीवन की सीमाओं को हमें हमेशा ध्यान में रखना है, अपनी मर्यादाओं की सुरक्षा मुझे करनी है और इसको लेकर के मन कभी भी भटके, तो भटकने नहीं दे, दृढ़ता से संकल्प लें। दृढ़ता से संकल्प ले कि मेरे प्राण चले जाएँगे लेकिन मैं अपनी मर्यादा नहीं खोने दूँगी, ऐसी दृढ़ता रखोगे तो जीवन में कभी नहीं भटकोगे।
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