अपने मन के विरूद्ध प्रसंग आने पर अपने परिणामों में स्थिरता कैसे लायें?
जब कुछ हमारे मन के विरूद्ध होता है, तब मन के विरुद्ध बातों को पचा नहीं पाते हैं। लाख मन के विरूद्ध हो जाए, यदि हमने उसे स्वीकार कर लिया तो हमको कोई अशांति नहीं; और मन के विरूद्ध कोई बात हुई और हमने उसे स्वीकार नहीं किया, उसको पचा नहीं पाए तो तकलीफ़ होती है। मैं आपको एक सूत्र देता हूँ। मन विरूद्ध आए प्रसंगों को स्वीकार करना प्रारम्भ कर दो। अशांति खत्म हो जाएगी। कितना सरल सा उपाय है! ‘पर महाराज! यही तो स्वीकार नहीं होता।’ यही तो जंजाल है, झंझट है। उसके लिए अभ्यास करना पड़ेगा।
उसके लिए व्यक्ति को चाहिए कि तत्त्व ज्ञान का आश्रय लें। सबसे पहली बात कर्म सिद्धान्त पर विश्वास रखिए। हम लोग बोलते हैं कर्मों में सहनशीलता दिखाएं। ये क्या है? सब हमारे मन के अनुकूल नहीं बन सकता। हम अपने मन को सबके अनुकूल बना सकते हैं। मतलब सब मेरे मन के अनुकूल नहीं बन सकते, पर मैं अपने मन को सबके अनुकूल बना सकता हूँ। मैं जैसा चाहूं, वैसा ही सब चाहें ऐसा नहीं हो सकता; जैसा और चाहते हैं वैसा मैं चाहूं ऐसा हो सकता है। तो तय करके चलें कि हम अपने मन को एडजस्ट करके चलेंगे। Adjustment (परिस्थिति अनुसार स्वयं की स्वीकृति) की power आएगी। आपके अन्दर कर्म सिद्धान्त पर भरोसा है, विश्वास है, तो जब भी मन के प्रतिकूल कोई भी प्रसंग बनता है आप उसे सहज भाव से स्वीकार करने में समर्थ होंगे।
दूसरी बात सकारात्मक सोचना शुरू करें। यदि आपकी सोच सकारात्मक होगी तो आप उल्टे की भी सीधी व्याख्या करने में समर्थ हो जाएँगे। उल्टे की सीधी व्याख्या करने वाला व्यक्ति प्रतिकूल को अनुकूल देखने लगता है। प्रसंग अपने आप शान्त हो जाता है। कर्म सिद्धान्त पर भरोसा रखें, सकारात्मक सोच रखें, प्रतिकूल को अनुकूल देखने की कोशिश करें, हर चीज में आपको बहुत-बहुत शांति होने लगेगी और आपका मन सहज शान्त होगा। यही हमारा पुरूषार्थ है। अन्यथा व्यक्ति के जीवन में तनाव हमेशा रहेगा। इसलिए अपने इस आर्तध्यान से अपने आप को बचाने का यही एक मार्ग है, यही एक प्रक्रिया है।
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