मेरी भावना की एक पंक्ति- ‘इष्ट वियोग में अनिष्ट योग में सहनशीलता दिखलाऊँ’- हम सब को बहुत अच्छे से समझाते हैं। लेकिन जब अपने ऊपर आकर पड़ती है, तो स्वत: ही अश्रु धारा बहनी शुरू हो जाती है, मन उद्वेलित हो जाता है, हम अपने मन को नहीं समझा पाते। ऐसे में हम कैसे अपने आप को संयमित करें?
‘इष्ट वियोग में अनिष्ट योग में सहनशीलता दिखलाऊँ’ की बात मन में आती है और वो बात आनी चाहिए। जब हमारे मन में अस्थिरता हो उस घड़ी में यदि हम इस तरह का अभ्यास बना के रखें और अपनी भावनाओं को पक्का बनके रखें तो इष्ट वियोग में अनिष्ट योग में अपनी स्थिरता लाई जा सकती है।
हम बार-बार भावना करके उस घड़ी पुरुषार्थ करें। जिस समय कषाय का वेग हो उस समय कषाय के शमन का काम बहुत कठिन होता है लेकिन जिस समय हम शान्त हैं उस घड़ी में कषाय के शमन का अभ्यास हम कर सकते हैं जैसे युद्ध छिड़ते समय युद्ध का अभ्यास नहीं होता, जो पहले से युद्ध का अभ्यास करता है वह युद्ध छिड़ने पर कभी पराभूत नहीं होता इसी तरीके से हमें करना चाहिए।
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