वक्ता या रचयिता की प्रमाणिकता का निर्णय कैसे करें?
सही बात है, किसी की भी बात सुनो तो यह मत देखो क्या बोला जा रहा है, पहले यह देखो कि ‘कौन बोल रहा है?’ शास्त्रों मे एक सूक्त आता है “वक्तु प्रामाण्यात वचन प्रमाण्यात।” वक्ता की प्रमाणिकता से वचनों में प्रमाणिकता आती है। तो अब आप कैसे जाने कि ‘यह वक्ता या यह लेखक सही है या नहीं?’ उस के काम देख लो, उसकी मान्यता देख लो, वह क्या कर रहा है। अगर उसकी मान्यता और अवधारणायें आपको अपने मूलभूत जिनशासन से बहिर्भूत दिखती हैं तो दूर से प्रणाम कर लो। पंडित टोडरमलजी ने एक कर्यिका उदृत की है –
बहुगुण विद्यानिलियो असुत्त भाषी तः विमत्तव्वो जह वर मनुजुत्तोयु विसरहवो विगहरोलोए।
बहुत गुण और विद्या से युक्त होने के बाद भी कोई असूत्र भाषी या आगम के विरुद्ध बोलने वाला है तो उसे दूर से छोड़ देना चाहिए। साँप चाहे कितनी कीमती मणि वाला क्यों ना हो, विषधर तो विघ्नकर ही होता है। अगर आप मणि के लोभ में साँप के पास जाओगे, तो मणि पाने से रहोगे पर उसके दंश के शिकार ज़रूर बन जाओगे। कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो बतासे में जहर मिला कर देते हैं, सावधान रहना।
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