दान के पात्र का चयन कैसे करें कि बाद में पछतावा न हो?

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शंका

हमारे शास्त्रों में चार प्रकार के दान बताये गए हैं। हम श्रावक वह चारों दान किस प्रकार करें कि हमें उसका दोष न लगे?
मेरे साथ एक घटना हुई जिसके बारे में आपको बताना चाहूँगी। हम एक बार जा रहे थे हमारी गाड़ी रेड लाइट पर रुकी तो वहाँ पर आठ-दस साल का बच्चा डॉक्टर का पर्चा लेकर सबसे पैसे मांग रहा था। वह हमारी गाड़ी के पास आया और बोला कि मेरी माँ का ऑपरेशन है और मुझे ₹२५००० की जरूरत है। हमारे पास सत्रह हजार रुपये थे हमने उसको दे दिये। फिर कुछ दिन बाद हम उसी लाइट पर रुके। वह बच्चा फिर उसी तरह भीख माँग रहा था।
इस तरह हम जो दान देते हैं और उस दान का अगर गलत कार्य में उपयोग होता है, दुरुपयोग होता है, तो क्या उसका दोष हमें लगता है?

समाधान

आप जैसा अनुभव कई लोगों का है, बुराई सदैव अच्छाई की ओट में पलती है कई बार ऐसे लोग होते हैं जो इस तरह का धंधा बना लेते हैं। दान देते समय पात्र-अपात्र का विचार करना आवश्यक है। लेकिन कई जगह ऐसा होता है जहाँ विचार कर पाना सहज नहीं हो पाता; उस समय विचार करने में व्यक्ति के जीवन मरण का प्रसंग आ जाता है। जहाँ सहजता से विचार करने योग्य परिस्थितियाँ हो वहाँ विचार किया जा सकता है; जहाँ ऐसी परिस्थितियाँ नहीं होती वहाँ विचार नहीं करना चाहिए “नेकी कर और कुएँ में डाल” की उक्ति को चरितार्थ करना चाहिए। 

आपका हृदय दया से अभिभूत हुआ और दया से अभिभूत होकर जो आपने सत्कर्म किया है, आपके लिए पुण्य का ही कारण बनेगा। लेकिन यह जानते हुये कि पात्र आपके पैसे का misuse करने वाला है, आपने जो दान दिया है वो फल नहीं देगा। तो आप पहले जाँच पड़ताल करें, संभल कर के दान दें, भावुकता में दान न दें। 

आपने उसे पैसे देने की जगह दवाइयाँ दे दी होती और पैसा देकर अपने कर्तव्य को पूर्ण करने की जगह थोड़ी तहकीक़ात करतीं कि- ‘उसे कितने पैसे की आवश्यकता है? जितना यह कह रहा है क्या इतने में इसकी आवश्यकता पूरी हो जायेगी?’ अगर आपके पास समय और अनुकूलता होती और आप उस के साथ हॉस्पिटल तक जाकर तहकीक़ात करते तो शायद स्थिति कुछ और होती। इसमें दोनों स्थितियाँ बन सकती थी; एक तो गलत व्यक्ति के पास पैसा देने से बच जाते और दूसरा हो सकता है कि वह व्यक्ति अधिक की आवश्यकता में संकोच वश कम की माँग कर रहा हो, तो आपके इस प्रयास से उसकी माँग की पूर्ति हो जाती। आपने खुद सहयोग दिया, दो, चार, दस से और सहयोग करा देते तो उसका उद्धार हो जाता तो यही सम्यक रास्ता है कि हम गहराई में जाकर वास्तविकता को पहचाने और जो ज़रूरतमंद है उसके हाथ मजबूत करें। 

जैसा आपने कहा- ऐसे अनेक फ़र्जी लोग इस दुनिया में घूमते हैं जो इस तरह के कृत्य करते हैं; पर उन्हें हमें ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसे दस फर्जी के पीछे नब्बे व्यक्ति को नुकसान हो सकता है। हर कोई फर्जी नहीं होता, एक – आध अपवाद ही होता है। इसलिए अपवाद को अपवाद की तरह ही देखना चाहिए।

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