भक्तामर स्तोत्र का अखण्ड पाठ कैसे करें और उसकी महिमा क्या है?
देखिए, अखण्ड पाठ एक विशिष्ट अनुष्ठान है और कहीं भी अगर इस तरह का अखण्ड पाठ होता है, तो वहाँ एक पवित्र वातावरण निर्मित होता है। तो इस तरह के अखण्ड पाठ का निषेध तो कभी नहीं करना चाहिए। मैं इसे एक माङ्गलिक अनुष्ठान के रूप में ही देखता हूँ। पर इसमें कुछ विकृतियाँ आ गई हैं। अखण्ड पाठ तो कर लेते हैं पर पेशेवर लोगों को बुला लिया जाता है। वे पाठ करते रहते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे मशीनी पाठ हो रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। रात्रि में लोग पाठ भी करते हैं और उनके साथ खाने-पीने की उल्टी-सीधी व्यवस्थाएँ भी होती हैं। यह भी अखण्ड पाठ में ठीक नहीं है।
अखण्ड पाठ को एक सद्-अनुष्ठान की तरह साधना मूलक रीति से करना चाहिए और जितने लोग उस अखण्ड पाठ से जुड़ना चाहें, उन्हें संकल्पित करना चाहिए कि इतने सारे लोग मिलकर यह अखण्ड पाठ करेंगे और जब तक यह अखण्ड पाठ चलेगा, हम कुछ विशेष धर्मानुष्ठान के साथ साधना करेंगे, एकासन करेंगे, एक बार भोजन करेंगे या दो बार भोजन करेंगे, शुद्ध भोजन करेंगे, तो यह उसके अनुष्ठान को कई गुना बढ़ा देगा। जैसे आप पूजा-विधान करते हैं वैसी मण्डल रचना करके भक्तामर जैसे स्तोत्र का अखण्ड पाठ, णमोकार मन्त्र जैसे मन्त्र का अखण्ड पाठ करेंगे, तो उसका असाधारण प्रभाव होगा। और उसको समय-बद्ध तरीके से रुचि, उत्साह और मर्यादा पूर्वक करें। ऊँघते हुए न करें और उल्टे सीधे लय-ताल के साथ न करें। अतिरिक्त ढोल-धमाका उनके साथ न होने दें, पवित्रता रहे। Mic लगे या न लगे, रात्रि में mic न बजाएँ, हल्ला न हो। आप जगते रहें, जितने लोगों को सुनना है, उतनी दूर तक आवाज जाये और पूरे वातावरण माङ्गलिक हो, तो यह अखण्ड पाठ बहुत-बहुत लाभकारी होगा, पूरे वातावरण को सुधारने में सहायक होगा।
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