मेरी माँ का मानना है कि मैं मन्दिर नहीं जाऊँगा तो मेरा नुकसान होगा या मैं असफल हो जाऊँगा, क्यों समाज के लोग और घरवाले डर दिखाकर भगवान की पूजा अर्चना कराते हैं। मुझे ईश्वर से प्रेम है। मैं डरने या डराने वाले भगवान नहीं चाहता हूँ। मुझे ईश्वर में पूरा विश्वास है और मेरी धारणा है कि मुझे कर्मों की निर्जरा करनी है और उसके लिए मुझे मन्दिर में दर्शन करना चाहिए। पर यदि मन्दिर जी नहीं जा सकूँ तो किसी भी स्थान पर बैठ कर णमोकार मन्त्र का जाप तो किया ही जा सकता है, आप मुझे निर्देशन दें?
बहुत अच्छी बात पर सबका ध्यान आकृष्ट किया। प्राय: घरवालों की एक भावना होती है कि हमारे परिवार के बच्चे या परिवार जैन धर्म से जुड़ें। परिवारजनों का बच्चों को धर्म से जुड़ने और जोड़ने का भाव एक प्रशस्त भाव है, रखना चाहिए लेकिन धर्म से जोड़ो तो धर्म के सही स्वरूप को समझा करके जोड़ो, डर दिखाकर के मत जोड़ो। भय से या प्रलोभन से लोग जब धर्म से जुड़ते हैं या तो अन्धविश्वासी बन करके रह जाते हैं या आने वाले दिनों में कभी कोई उसकी पूर्ति नहीं हो पाती, पूर्ति नहीं होती तो फिर वो धर्म से ही विमुख हो जाते हैं।
अन्धविश्वास भी गलत है और धर्म की विमुखता भी गलत है। दोनों के बीच तालमेल बना करके चलना चाहिए। हमें क्या करना चाहिए? धर्म हम क्यों करते हैं, यह प्रयोजन सामने होना चाहिए। धर्म इसलिए नहीं करते कि हम धर्म करेंगे तो मेरे ऊपर कोई संकट नहीं आएगा। धर्म हम इसलिए करें कि चाहे कितनी भी बड़े संकट क्यों न खड़े हो अगर हम धर्म करेंगे तो उसको सहने की सामर्थ्य मेरी बनी रहेगी। मैं बड़े से बड़े संकट को सहूँगा। जिनकी हम पूजा करते हैं, जो भगवान बने उनके जीवन में महा संकट आये, पर उन्होंने संकटों के आगे कहीं सिर नहीं झुकाया, स्वयं उसका सामना किया, अपने आप को मजबूत किया, अपने आध्यात्मिक शक्तियों के बल पर, अपने जीवन में आगत संकटों का निवारण किया। अपने जीवन में जब कभी भी कोई संकट आये तो विचलित न हो।
मैं कहना चाहूँगा कि धर्म के वास्तविक स्वरूप को खुद समझें, अपने बच्चों को भी वैसे धर्म का स्वरूप समझायें, बच्चों को कहो कि बच्चे अगर धर्म करोगे तो तुम्हारी बुरी प्रवृत्तियाँ हटेंगी, तुम्हारे अन्दर की नकारात्मकता दूर होगी, जीवन में पवित्रता आयेगी और जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव के मध्य तुम स्थिरता लाने में समर्थ होंगे, ऐसा करके अगर व्यक्ति धर्म से जुड़ता है, तो तय मान कर चलिए वो जीवन में कभी धर्म से विमुख नहीं होगा और कभी अन्धविश्वासों का शिकार भी नहीं होगा।
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