युवाओं एवं बच्चों को धर्म से जोड़ने के लिए क्या करें?

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शंका

हम युवाओं एवं बच्चों को धर्म से जोड़ने तथा उनका रुझान धर्म की तरफ बढ़ाने के लिए क्या करें?

समाधान

युवा और बच्चों को धर्म से जोड़ने के लिए आप धर्म कीजिए, अच्छे तरीके से धर्म कीजिए, धर्म के नाम पर कोई पाखंड मत जोड़िए। उन पर धर्म थोपें नहीं, उनके ह्रदय में धर्म की भावना जगायें, हर बात को logically (तार्किकता से) उन्हें समझाएँ ताकि बच्चों को यह समझ में आये कि धर्म का हमारे व्यावहारिक जीवन में बहुत महत्त्व है। यदि बच्चे उसको ठीक ढंग से समझ लेते हैं तो बहुत फर्क पड़ता है। 

आज ही एक परिवार मेरे पास आया और बोला कि “मेरी बेटी धर्म से थोड़ा दूर रहती है।” मैंने उसकी तरफ देखा और मुझे लगा कि ये धर्म से तो दूर नहीं। बच्ची बोली कि “महाराज जी! मैं धर्म से तो दूर नहीं हूँ लेकिन मुझे धार्मिक क्रियाओं में रुचि कम है, मन्दिर नहीं जाना चाहती, मन में ही भगवान को याद कर लेती हूँ।” हमने कहा “मन में ही भगवान को याद कर लेती हो, अच्छी बात है। पर यह बताओ जिससे तुम्हारा जुड़ाव हो उसको केवल मन में ही याद करने से काम होता है? क्या तुम अपने friend(मित्र) से मिलने के लिए जाती हो?””हाँ, मिलने जाते हैं।” “महाराज से जुड़ाव है, तो तुम मिलने आते हो?” “हाँ आते हैं” “क्यों? जिससे जुड़ाव हो उससे मिले बिना रहने को मन मानता है।”  “नहीं महाराज! मिले बिना मन नहीं मानता” “तो फिर भगवान के पास क्यों नहीं जाते?” वह बोली “इसलिये नहीं जाते क्योंकि आप लोग बोलते हैं और भगवान बोलते नहीं।” हमने कहा “भगवान बोलते हैं लेकिन तुम भगवान से dialogue(वार्तालाप) करना ही नहीं जानते।” “वो तो मूर्ति है, कैसे बोलेगें?” “यह बताओ अगर तुम्हारे पास तुम्हारे दादा जी की कोई फोटो हो, कोई कहे कि वो इस पर थूकेगा तो तुम्हें कैसा लगेगा?” “अच्छा नहीं लगेगा?” “क्यों अच्छा नहीं लगेगा वह तो फोटो है?” “नहीं वह मेरे दादाजी की फोटो है।”

“कागज की फोटो से तुम्हारा मन प्रभावित होता है, तो भगवान की मूरत से भी तुम्हारा मन प्रभावित हो सकता है। अपने आप ये सोचो -जो भगवान मन्दिर में विराजमान हैं, मूरत नहीं साक्षात् भगवान हैं, ध्यान में निमग्न हैं और मैं अपनी बात, अपनी फरियाद भगवान के चरणों में अर्पित करने जाती हूँ और भगवान मुझसे कुछ कहें या न कहें मेरी सुन जरूर लेते हैं। यदि भगवान ने मेरा सुन ली तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।”

उस लड़की को बहुत अच्छा लगा और उसने फिर मुझसे स्वयं कहा कि “मैंने आज तक कभी ऐसे समझा नहीं, मेरे पापा- मम्मी मुझसे हमेशा यह तो कहते हैं कि मन्दिर जाओ, मन्दिर जाओ लेकिन मन्दिर क्यों जाओ इस तरह उन्होंने मुझे कभी नहीं समझाया। महाराज जी! आज आपसे मैं बहुत inspire (प्रभावित) हुई हूँ अब मैं रोज मन्दिर जाउंगी।”

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