यदि किसी को बहुत तेज क्रोध आता है, तो उस पर कैसे control (नियंत्रण) किया जावे?
जिसको बहुत ज्यादा क्रोध आता है, उसकी बात तो मैं बाद में करूँगा। उस क्रोध को झेलने वाले व्यक्ति को अपने आप पर control (नियंत्रण) करने की बात मैं पहले करूँगा।
बस इतना ही करो कि कि जहाँ आग हो उससे दूर हो जाओ। ऐसे लोगों से दूर रहो जिसको बहुत क्रोध आता है। उसके सामने आप प्रतिक्रियाएँ न करें। ये मान लें कि ये उसका स्वभाव है, उससे प्रभावित न हों। जो क्रोध में है उसके सामने वाले को ‘बोध’ में रहना चाहिए। यदि किसी के अन्दर क्रोध है और उसके सामने वाले के अन्दर उसका बोध होगा तो क्रोध सँभल जायेगा। वह आग बने, आप पानी बनिये। उसके क्रोध में प्रतिक्रिया का ‘पेट्रोल’ डालने की जगह ‘सहनशीलता’ का पानी डालो तो आग अपने आप बुझ जायेगी और काम हो जायेगा।
दूसरी बात जिसका स्वभाव क्रोध करने का है, तो ये मान लो कि ये उसका स्वभाव है। उसको nature (नैसर्गिक) मानकर अनदेखा करो। कई लोग बड़े क्रोधी स्वभाव के होते हैं। क्या करें नहीं छूटता, स्वभाव बन जाता है। सामने वाले के स्वभाव को न बदल सको तो कोई बात नहीं, अपने स्वभाव को बदलने की कोशिश करो। क्रोधी के क्रोध को स्वभाव मान लो। मामला ठीक हो जायेगा। एक बहनजी बहुत परेशान थीं क्योंकि उसका पति उसे बहुत उल्टा-सीधा बोलता था। एक बार मेरे पास आईं और बोली कि ‘महाराज जी! मेरे पति बहुत क्रोधी हैं, बड़ा मुश्किल हो गया है २२-२३ साल हो गये शादी के झेलते-झेलते। आज तो महाराज जी बहुत हो गया, बर्दाश्त नहीं होता। मन होता है कि घर छोड़कर चली जाऊँ।’ संयोगवश, मै जिस गाँव में था वहाँ एक पागल घूमता था। मैं उसका घर जानता था तो मैंने कहा कि तुम जब घर से यहाँ तक आई तो रास्ते में तुम्हें वो पागल मिला? बोली हाँ मिला। मैंने पूछा क्या बोलता है? ‘बड़ी भद्दी-भद्दी गालियाँ देता है।’ मैंने पूछा कि तुम्हारे पति भी वैसी ही गाली देते हैं? उसने कहा कि ‘नहीं-नहीं महाराज, वैसी तो नहीं देते मगर अच्छा नहीं बोलते हैं।’ मैंने कहा कि पागल तो गाली देता है। तुम्हे दिया? उसने कहा कि सबको देता है। हमने कहा कि ‘आज तुम आईं, तुम मिली तो तुम्हें गाली दिया?’ बोली- हाँ, महाराज दिया। हमने कहा कि ‘तुम्हें गुस्सा क्यों नहीं आया?’ तो बोली ‘महाराज गुस्सा कैसे आयेगा वह तो पागल है।’ हमने कहा- बस यहीं समझ लो कि तुम्हारा पति तुम्हें गालियाँ देने लगे तो समझ लो कि पगला गया है। मामला ठीक। ये एक पहलू हुआ कि सामने वाले के क्रोध को हम कैसे झेलें? स्वयं के क्रोध पर control (नियंत्रण) कैसे करें?
क्रोध पर नियंत्रण कैसे करें? इसका उपाय बताता हूँ। आपको क्रोध क्यों आता है कभी इस पर विचार किया? ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसके जीवन में क्रोध या क्षोभ नहीं आया हो या किसी के क्रोध का शिकार न बना हो। जब हमारे मन के विरूद्ध कुछ होता है तब क्रोध होता है। हमने चाहा कुछ और हुआ कुछ, क्रोध आ गया। मन विचित्र है पल-पल में बदलता है। क्रोध आ जाता है, तो मन अपने विरुद्ध किसी बात को स्वीकारने के लिए राजी नहीं होता। इसलिए जब भी मन के विरुद्ध कुछ होता है हमको क्रोध आ जाता है। मन के विरुद्ध होने पर क्रोध आये तो उस समय आप अपने मन को बदलो और क्रोध की व्याख्या positive (सकारात्मक) करनी शुरू कर दो। क्रोध कब आता है, मैं आपको उदाहरण देता हूँ। मान लीजिए कि गर्मी का समय हो, आप काफी दूर पैदल चलकर के थक गये है और कंठ सूख रहा है और छायादार पेड़ के नीचे बैठे हैं। उसी बीच पीछे के मकान से एक आदमी निकला और कहता है कि ‘भाई साहब बहुत थके नजर आ रहे हो। पानी लाऊँ क्या?’ उस समय आप क्या बोलेंगे कि ‘बहुत कृपा होगी।’ आदमी अन्दर गया पानी लेने के लिए और १५ मिनट तक बाहर नहीं आया तो आप की क्या प्रतिक्रिया होगी? उस समय आप कहोगे कि ‘कैसा आदमी है फ़ालतू में आ गया? पानी पिलाने के लिए मैंने थोड़ी न बोला था? पानी नहीं देना था, तो नाटक क्यों करता था?’ और पता नहीं दिमाग में क्या-क्या बातें आयेंगी? और १५ मिनट के बाद वो आदमी आया और बोला ‘भाई साहब! क्षमा करना, विलम्ब के लिए। शरबत बना लूं इसलिए देर हो गई।’ उस समय आप की क्या प्रतिक्रिया होगी? ‘कितना बढ़िया आदमी है, आदमी ही नहीं देवता आदमी है जो पानी की जगह शरबत ला रहा है।’ ये हमारा मन है, मन अपने से विरूद्ध बात को जल्दी से स्वीकार करने को तैयार नहीं होता। यदि क्रोध को जीतना है, तो अपने मन को सब बातों को जीतने के लिए एडजस्ट करने के लिए राजी करो। देखो पानी हर बर्तन में समाहित हो जाता है लेकिन बर्फ हर बर्तन में समाहित नहीं होता। जिसका मन पानी की तरह होता है वह हर जगह एडजस्ट हो जाता है और जिसका मन बर्फ की तरह होता है उसको एडजस्ट करने के लिए टुकड़े करने पड़ते हैं। मन को पानी बनाओ, सब के साथ एडजस्ट करो।
दूसरी बात क्रोध तब आता है जब हमारे मन के विरूद्ध कोई व्यवहार करता है। अपशब्द बोल दिया, अभद्र व्यवहार कर दिया हमारे मन के विरूद्ध कार्य कर दिया तो क्रोध आता है। उस जगह एक ही चीज है उसके उल्टे की सीधी व्याख्या करना शुरू कर दो। प्रतिकूल की अनुकूल व्याख्या करना शुरू कर दो। आप अपने क्रोध पर नियंत्रण लाने में समर्थ हो सकोगे। और तीसरा उपाय बहुत ही तुरंत उपाय है कि जब क्रोध आने को हो तो तुरंत ये निर्णय लो कि मुझे अभी जवाब नहीं देना है। अपने आप पर कंट्रोल करो। तुरंत प्रतिक्रिया को रोको, तो क्रोध पर आप नियंत्रण ला सकोगे। अन्यथा मामला गड़बड़ हो जायेगा।
चौथी बात गुस्सा आये तो हंसकर टालने की कला अपनाओ। हंस कर टालने लगोगे तो आप अपने आप को गुस्से से बचा सकोगे। यदि कोई अपशब्द कहे तो इधर-उधर देखो अनदेखी कर दो। हंस कर टालने की आदत जो व्यक्ति बना लेता है उसे जीवन में कभी क्रोध नहीं आता।
एक अपार्टमेंट में एक नव दम्पत्ति रहते थे। उनके फ्लैट से अक्सर हँसी की आवाज़ आती रहती थी। नया जोड़ा और हँसी की आवाज़? अगल-बगल के लोगों के लिए आश्चर्य का विषय बन गया। आखिर क्या बात है इनमें कोई खट-पट नहीं होती क्या? एक दिन एक युवक ने उससे पूछ ही लिया कि ‘क्या बात है भाई जब देखो तुम्हारे फ्लैट से हंसने की ही आवाज़ आती है, मामला क्या है?’ उसने बोला कि ‘क्या बताऊँ मेरी पत्नी बहुत गुस्सैल है।’ उसने कहा कि ‘गुस्सैल है, तो हंसते क्यों हो?’ उसने कहा कि यही तो राज की बात है। उसने बोला कि ‘क्या राज है?’ बोला कि ‘जब मेरी पत्नी को गुस्सा आता है, तो घर का सामान उठा-उठा कर फेंकती है। जब उसका निशाना लग जाता है, तो वह हंसती है और चूक जाता है, तो मैं हंसता हूँ। इसलिए निशाना लगे या चूके हंसते रहिए।
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