हमारे अनुकूल परिस्थितियां नहीं होती है, ऐसे समय क्या करना चाहिए?
मनुष्य के जीवन का असंतोष उसका मूल कारण है अभावोन्मुखी दृष्टि, किसी चीज का अभाव होता है उसकी तरफ जब ध्यान जाता है तो असंतोष होता है | पहला कारण ,आदमी के पास लाख हो उसे नही देखते , उससे उसका कोई सम्बन्ध नही, उसको पाने की जो लालसा जगती है वही असंतोष की सृष्टि करती है| जब तक आपकी दृष्टि अभावोन्मुखी होगी आप दुखी रहेंगे | एक आदमी करोड़पति होने के बाद भी उसकी दृष्टि दूसरे अरबपति के तरफ होगी तो उसका क्या हाल होगा ? वह कभी सुखी नहीं होगा | वह अपने करोड़ को देख रहा है तो आनंद में है ,करोड़पति की बात जाने दीजिए, हजारपति व्यक्ति भी अपने हजार को देखेगा तो आनंद में होगा | अभावोन्मुखी दृष्टि जब तक होगी असंतोष की दृष्टि होते रहेगी | इसलिए संतोष को प्रकट करना चाहते हो तो उसे देखो जो तुम्हारे पास है, उसे कभी मत देखो जो तुम्हारे पास नहीं है | लेकिन लोग उसको नहीं देखते जो हैं, सदैव दृष्टी उस पर भागती है जो नहीं है| एक बार कोयल का बच्चा, मोर के बच्चे को देखकर मचल उठा और उसने अपनी मां से कहा- मां मेरे काले-काले पंख अच्छे नहीं लगते, मुझे मोर जैसे सुंदर- सुंदर पंख चाहिए| मां ने कहा- बेटे, अपने पंख अच्छे हैं , यह अपने काम के है , इनके सहारे अपन उड़ते है | नही मां , मुझे तो कैसे भी हो, एनी हाऊ मोर जैसे पंख चाहिए | कोयल ने बहुत समझाने की कोशिश की, पर बच्चे हैं, मचलते हैं तो मचलते हैं| उन्हें मां-बाप की मजबूरी का कोई आभास नहीं होता | बच्चे के बार-बार के आग्रह को देख कर कोयल मोर के पास गई और कोयल ने मोर से कहा कि मोर भैया ,तुम्हारे पंख सुंदर और अच्छे हैं | मेरे बच्चे का जी तुम्हारे पंखों को लेने का हो रहा है यदि तुम अपने एक-दो पंख दे दोगे तो मेरे बच्चे का मन रह जाएगा | कोयल के निवेदन को सुनकर मोर ने अपने पंख झड़ाये और कोयल ने अपने बच्चे के पंख में लगा दिया | जैसे ही मोर के सुंदर पंख को कोयल के बच्चे ने पाया, मधुर स्वरों में गुंजना शुरू कर दिया | जैसे ही कोयल की मधुर- मधुर वाणी को मोर के बच्चे ने सुना, वह अपनी मां से बोला – मां, मेरी आवाज बड़ी बेसुरी है, मुझे कोयल जैसी मधुर आवाज चाहिए | यह मनुष्य की मनोवृत्ति है असन्तोष की जननी | कोयल का बच्चा मोर के पंख के लिए परेशान और मोर का बच्चा कोयल की आवाज के लिए परेशान | हर इंसान की यही हालत है |
रविंद्रनाथ टैगोर की पंक्तियां बहुत सार्थक है- छोड़ कर निश्वास कहता है नदी का यह किनारा, उस पार ही क्यों बह रहा है जगत भर का हर्ष सारा | छोड़कर निश्वास कहता है नदी का किनारा, उस पार ही क्यों बह रहा है जगत भर का हर्ष सारा | किन्तु लंबी सांस लेकर यह किनारा कह रहा है, हाय रे हर एक सुख उस पार ही क्यों बह रहा | इस पार वाले को उस पार और उस पार वाले को इस बार इसलिए है मझधार | पहला कार्य है अभावोन्मुखी दृष्टि जो तुम्हारे पास है उसे देखो, तुम्हारे मन में कभी असंतोष नहीं होगा | दूसरा है यथार्थ की अनदेखी, यथार्थ को समझो, यथार्थ क्या है जीवन का जिसने जन्म लिया उसको मरना है, ना मैं कुछ लेकर आया हूं ना लेकर जाऊंगा और जो मेरे भाग्य में वही मुझे मिलेगा | इसकी जो अनदेखी करते है , मृग मरीचिका की दौड़ में दौड़ते है, अंधी दौड़ में दौड़ते रहते है , जिसका कोई गंतव्य नही ,जिसकी कोई मंजिल नही , जिसका कोई लक्ष्य नहीं, केवल दौड़ना ,दौड़ना , दौड़ना | तीसरी बात- कृत्रिम अपेक्षाओं का विस्तार, आज आदमी अपनी जो नेचुरलटी है उसको खो रहा, स्टेटस के नाम पर | अपनी हैसियत से बढ़-चढ़कर के व्यक्ति जब अपेक्षाओं को पाल लेता है | एक साधारण आदमी करोड़पति की भांति जीना चाहता है तो उसके जीवन में संतोष की आग लगनी शुरू हो जाती है और कभी-कभी उसकी स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो जाती है | ऐसे व्यक्तियों का संतोष कैसा होता है और सब चीजों में कृत्रिम अपेक्षा | एक महिला काफी ज्यादा तड़क-भड़क के साथ अपनी सहेली से मिली | सहेली ने जब उसको नए रूप में देखा तो उसे बड़ा अच्छा लगा | सहेली ने पूछा कि क्या बात है आजकल तो तुम स्मार्ट रहने लगी हो, तुम्हारा स्टेटस बहुत अच्छा लग रहा है, क्या बात है तुम्हारे पति की आमदनी बढ़ गई क्या ? पति ने अपना व्यापार बदल लिया क्या ? नही जी , मैंने अपना पति बदल दिया | यह हाल है कृत्रिम अपेक्षाओं का विस्तार जो मनुष्य को दुखी करती है | आप अपनी जो वास्तविकता है उसमें सीमित रहे, उसे स्वीकार करें , जीवन में कभी दुविधा और द्वंद प्रकट नहीं होंगे | ये यदि आप करेंगे जीवन में बहुत शांति मिलेगी और यदि ऐसा नहीं करते तो कुछ नहीं हो सकते हैं | केवल तीन बातें बता रहा हूं जो है उसको देखो नंबर वन | नंबर दो, कृत्रिम अपेक्षाओं को ना रखकर के सहजता में जीवन जीने की कोशिश करें और नंबर 3 जीवन के यथार्थ को अपने सामने रखें और संयमबहुल प्रवृत्ति अपनाएं | चौथी बात, अगर आपके अंदर संयम हैं, अपने आप पर कंट्रोल रखने की क्षमता है, आपके मन में कभी असंतोष प्रकट नहीं होगा|
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