जैनों के शहरों में पलायन के कारण मंदिरों की देखरेख नहीं होती, क्या करें?
यह एक बहुत बड़ी समस्या है। पूरे देश में पलायन हो रहा है। गाँव में निर्वाह नहीं होने के कारण सब कस्बों और शहरों की तरफ आकृष्ट हो रहे हैं। गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं और खुद तो चले गए, यहाँ भगवान हैं, मन्दिर हैं, शिखरबंद मन्दिर है क्या करें? समाज के सामने बड़ी समस्या है।
मैं मध्य प्रदेश में था, ऐसी एक-दो समस्या मेरे सामने आयी। जब समाज ने मेरे सामने बात रखी तो मैंने देखा एक-दो मन्दिरों में अच्छी सम्पत्तियाँ थीं, तो मैंने उनसे कहा कि “तुम लोग उस संपत्ति से ऐसे जन कल्याणकारी कार्य करो कि समाज को भी लाभ मिले”। समाज के कुछ लोगों ने मेरे कहने से गाँव में स्कूल खोला और वहाँ जैन शिक्षकों की नियुक्ति होने के कारण वहाँ जैन बस गए। भगवान के पूजा प्रक्षाल की भी व्यवस्था हो गई और वहाँ के स्थानीय समाज का भी जैनियों के प्रति अच्छा रूतबा बन गया।
जहाँ भी ऐसे मन्दिर हैं वहाँ कुछ ऐसा उपक्रम करने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें किसी ने किसी तरीके से समाज के ज़रूरतमंद लोग जुड़ जाएँ। भगवान की सेवा पूजा भी होते रहे और वहाँ के स्थानीय लोगों को भी लाभ मिल सके।
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