शुभ-अशुभ कैसे जानें?

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शंका

जैन समाज प्राय: व्यवसाय से जुड़ा हुआ है और व्यवसाय करने की सबसे पहली सीढ़ी होती है शुभ-अशुभ। यहीं से जैन धर्म के लोग मिथ्यात्त्व में घुस जाते हैं। क्या जैन धर्म के अनुसार के शुभ-अशुभ जांचने का कोई तरीका है?

समाधान

जैन धर्म में शुभ-अशुभ जांचने का तरीका है। जिस कमाई से शांति मिले शुभ है और जिससे अशांति मिले वह अशुभ है। सच्चा शुभ-अशुभ तो यह ही है जिससे कमाई बढ़े वह शुभ और जिससे कमाई न बढ़े वह अशुभ। यह तो तुम लोग कहते हो लेकिन जिस कमाई से शांति मिले वह शुभ है, बाकी सब अशुभ है। 

शकुन आदि की बातें जैन धर्म में हैं, मान्यताएँ भी हैं लेकिन इस प्रकार के टोटके वालों का जैन धर्म में कहीं स्थान नहीं है जिसमें केवल ऊपर के क्रियाकांड करें और अपने कर्म को परिवर्तित करें। जीवन में जो भी अशुभ संयोग आते हैं, वह अशुभ कर्म के उदय से आते हैं। अशुभ कर्म के उदय से आने वाले अशुभ संयोगों का अगर आप निराकरण करना चाहते हैं तो शुभ कर्म अनुष्ठान करें। शुभ से ही अशुभ को टाला जा सकता है और कोई दूसरा रास्ता नहीं है इसलिए विश्वास रखिए और हमारे सारे अशुभ अमंगल को काटने का अमोघ अस्त्र है। हमारे पास णमोकार महामंत्र है उनकी आराधना कीजिये। पंच परमेष्ठी से जुड़ें, किसी भी मन्त्र की आराधना कीजिए और उसी विशुद्धि से आपका अशुभ टलेगा। 

एक बात ध्यान रखना जब तक आपका पाप कर्म तीव्र होगा आप कितने भी उपाय कर लो कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि बाहर के निमित्त तो निमित्त है, अन्तरंग हमारा मजबूत होना चाहिए। हम अपने अन्तरंग को मजबूत करने की कोशिश करें धीरे-धीरे अपने पाप को पतला करें, पुण्य को गाढ़ा बनायें, अशुभ समय भी टलेगा, घबराना कभी नहीं चाहिए। कितना भी अशुभ हो, एक न एक दिन तो शुभ होगा। उस कहावत को मत भूलना कि एक दिन घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। रात के बाद तो प्रभात होगा, क्या बिगड़ेगा?, बिगड़ने दो, जो जीवन में आए उसका दृढ़ता से सामना करो और अपने जीवन को उसी अनुरूप आगे बढ़ाओ।

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