शारीरिक शिथिलता की स्थिति में धर्म ध्यान कैसे करें?
शरीर धर्म-ध्यान का बहुत बड़ा साधन है। शरीर ही माध्यम है तभी धर्म साधना है, शरीर के बल पर ही धर्म का साधन – आराधन किया जाता है। इसलिए शरीर के स्वस्थ रहते धर्म ध्यान करते रहना चाहिए।
जब शरीर शिथिल होने लगता है, तो धार्मिक क्रियाओं में बहुत सारी बाधाएँ आनी शुरू हो जाती है, उन बाधाओं के रहते धर्म ध्यान करना थोड़ा कठिन हो जाता है। लेकिन एक बात ध्यान रखना चाहिए जब तक सम्भव हो आप तन से धर्म ध्यान करें और जब तन शिथिल होने लगे तो मन से, जितना बने उतना करें। अगर मन जागृत है, तो व्यक्ति बहुत कुछ धर्म ध्यान कर सकता है; जैसे णमोकार जपने में आपकी शारीरिक शिथिलता आड़े नहीं आती है। भगवान का अभिषेक पूजन करने में आपकी शारीरिक शिथिलता आड़े आ सकती है, एक आसन पर स्थिर होकर बैठने में आपकी शारीरिक शिथिलता आड़े आ सकती है, व्रत – उपवास करने में आपकी शरीर की शिथिलता आड़े आ सकती है लेकिन णमोकार जपने में कभी भी शरीर की शिथिलता बाधा नहीं बनती। भगवान का नाम लेने में, णमोकार जपने में आप अपना धर्म ध्यान कर सकते हो; जितना बन सके, करें।
आपको शारीरिक शिथिलता तो नहीं है, आप अभी घुटनों का ऑपरेशन करवा के आए हो, जवान होकर के आए हो, थोड़े दिन में ठीक होंगे तो काम होगा। इनकी लगन देखो, तीन दिन पहले ऑपरेशन कराया अहमदाबाद में और सीधा यहीं आ गए यह इनकी सक्रियता का उदाहरण है कि जैसे ही ऑपरेशन ( शल्य क्रिया) करने के बाद डॉक्टर ने फ्री किया, वे यहाँ आ गए। मैं एक बात मानता हूँ जो मनुष्य जीवन भर सक्रिय होता है वो कभी भी शिथिल नहीं होता। सक्रिय बने रहो शिथिलता हावी नहीं होगी।
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