कुशल नेतृत्व कैसे करें?

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शंका

जब किसी बुद्धिमान बच्चे को या किसी काबिल व्यक्ति को कप्तान बना दिया जाता है, नेतृत्व के लिए अकेले खड़ा कर दिया जाता है, तो बाकी के लोग उसके खिलाफ हो जाते हैं। इसे अपनी ईगो पर ले लेते हैं, उसके निर्णय का पालन नहीं करते। बिना किसी के ईगो को ठेस पहुँचाए नेतृत्व कैसे किया जाए?

समाधान

व्यक्ति की काबिलियत तभी मानी जाती है जब अपने पीछे चलने वालों को अपने साथ लेकर चल सके। जहाँ तक आलोचना और विरोध का सवाल है, हर अच्छे कार्य के साथ ऐसा होता है। लेकिन हमारी कुशलता इसी में है कि हम अपने काम के माध्यम से आलोचकों का मुँह बंद करें और आलोचकों को भी अपना प्रेमी बना दें। ऐसा वही कर सकता है जो अपने दायित्त्व का अच्छे तरीके से निर्वाह करता हो, उदार हो, विरोधियों की अच्छी बात को स्वीकार करता हो, छोटी-छोटी बातों में प्रतिक्रियाएँ नहीं देता हो। जिसकी हाज़मे की शक्ति अच्छी हो, चीज़ों को पचाने में समर्थ रहता हो। ऐसा व्यक्ति बहुत जल्दी सर्व लोकप्रिय हो जाता है और यही लोकप्रियता उसके नेतृत्व को धार लेती है। ये हमारी कोशिश होनी चाहिए। 

प्रायः जब कोई व्यक्ति मुख्य पदों को प्राप्त कर लेता है ऐसा देखने में आता है कि वह पद के अहंकार में डूब जाता है और अपने पद के आगे बाकी सब को नगण्य समझना शुरू कर देता है।

एक शहर में एक ऐसे व्यक्ति को समाज का अध्यक्ष बनाया गया जिसका उस शहर से पहले कोई ज़्यादा सम्बन्ध नहीं था। बाहर पढ़ा था, पढ़ लिख करके कारोबार किया, अच्छी सफलता पाई और अपने शहर में आया। ६-८ महीने हुए और लोग उसकी प्रतिभा और प्रभाव से परिचित थे, उसे अपना अध्यक्ष बना दिया। कुछ लोगों को यह बात नहीं जमी- ‘अरे! ये कल का बच्चा आज हमारा नेतृत्व करेगा? इसको आता क्या है?’ जो अक्सर प्रतिक्रियाएँ होती हैं वे प्रतिक्रियाएँ हुईं। लेकिन लोगों की चली नहीं, खासकर युवा वर्ग ने उसे पसन्द किया था। वो आगे बढ़ा, उस व्यक्ति ने इस बात को भांप लिया कि ‘कतिपय लोगों के मन में मेरे इस सफलता से तकलीफ है।’ सबसे पहले जाकर के उन सब के चरण छुए और अपनी सफलता के लिए आशीर्वाद माँगा और कहा ‘आप लोगों ने मुझे जिम्मेदारी दी है, अब आशीर्वाद दीजिये कि मैं कुछ कर सकूँ। मुझे कुछ आता जाता नहीं’, सारा श्रेय उनके सिर पर डाल दिया और उसने एक नीति अपनाई, अपनी हर सफलता का श्रेय अपने विरोधियों को देना शुरू कर दिया और उसने उनका दिल जीत लिया। आज वह सर्व लोकप्रिय बन गया। तो ये चीजें होती हैं। व्यक्ति अपने आचार-विचार और व्यवहार से शत्रु को भी मित्र बना सकता है।

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