धन सम्पत्ति का उपार्जन व उपयोग कैसे हो?

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शंका

हम लोगों को जो सम्पदा और संसाधन मिलते हैं, पुण्य के प्रताप से मिलते हैं। इन संसाधनों एवं सम्पदा का उपयोग हम बड़े-बड़े कार्यक्रमों में करते हैं- जैसे २५वीं anniversary मना रहे हैं या कभी बड़े-बड़े शादी के बाद आयोजन कर रहे हैं तो क्या यह उचित नहीं होगा?

समाधान

सबसे पहले समझिए कि धन सम्पत्ति का उपार्जन कैसे होता है और उसका उपयोग कैसा करना चाहिए? धन सम्पत्ति का उपार्जन पुण्य करके नहीं होता, पाप करके होता है। पुण्य के उदय में अनुकूल सहयोग मिलते हैं और उसमें व्यक्ति जब पाप करता है तब पैसा कमाता है। पुण्यवान पाप करके पैसा कमाता है, मैंने पहले भी इस बात को बोला है। आपके पास पुण्य था, पैसा कमाने में उपयोग किया। आप पैसा कमाने के लिए व्यापार करते हो तो षटकाय जीव की विराधना उसमें होती है या नहीं? षटकाय जीव की विराधना आपने की, उससे पैसा कमाया तो उसमें हिंसा हुई कि नहीं हुई? आप पाप के भागी हुए कि नहीं हुए? तो तय है कि आपने जो पैसे का उपार्जन किया है वह पाप करके किया, पुण्य के उदय में पाप किया, पैसा कमाया। उस पैसे को कमाने के बाद में भोगोगे तो क्या करोगे, पुण्य कि पाप? भोगने में क्या होता है मौज-मस्ती, भोग-विलास के संसाधन। पाप करके पैसा कमाया, पाप में लगाया तो अपने पुण्य को और क्षीण किया। पुराना पुण्य जो तुम्हारे बैलेंस शीट में था, वह साफ हुआ, और पाप किया, कमाते समय और उसको भोगने में भी पाप तो आने वाले समय में क्या होगा? 

एक आदमी अपनी पूरी कैपिटल को पहले तो खा ले, उसके बाद बाजार से कर्जा ले और कर्जा लेने के बाद और कर्जा ले ले तो क्या कभी चुका पाएगा? तो क्या होगा दिवालिया होगा कि नहीं? ऐसे लोग सब दिवालिया होने का इंतजाम कर रहे हैं। अपने पुण्य को क्षीण कर रहें है। पाप करके कमाने में भी और भोगने में भी इसलिए बन्ध हुआ। मैं सभी से कहना चाहता हूँ जितना आवश्यक है उतना उपार्जित करो। उपार्जित द्रव्य के प्रति आसक्ति मत रखो। पाप करके पैसा कमाया जाता है और उस पैसे का सदुपयोग करके पुण्य कमाया जा सकता है। भोग विलासता में पैसा लगाओगे तो और गाढ़ा पाप बाँधोगे; और धर्म ध्यान में, परमार्थ के कार्य में, अच्छे कार्य में अपना पैसा लगाओगे तो पुण्य कमाओगे। लेकिन ध्यान रखना जिनकी होनहार अच्छी होती है उनकी ही बुद्धि सतकार्य से जुड़ती है। आज सुरा-सुंदरी के चक्कर में पैसा बहाने वाले लोगों की लाइन लगी है, पर परमार्थ के क्षेत्र में अपना रुपया विरला भाग्यशाली ही लगाता है। 

दो प्रकार के पुण्य की बात आती है- एक पुण्यानुबन्धित पुण्य और एक पापानुबन्धित पुण्य। पुण्यानुबन्धित पुण्य वह पुण्य है जो अपने उदय में व्यक्ति की बुद्धि को निर्मल बनाकर उसे नये पुण्य के उपार्जन में लगाता है, उसे अच्छे कार्यों में लगाता हैं। पापानुबन्धित पुण्य वह पुण्य है जो व्यक्ति की बुद्धि को विकृत कर भोगासक्त करता है और दुर्गति का पात्र बनाता है। रावण के पास पुण्य था पापानुबन्धित पुण्य; सद्दाम हुसैन के पास पुण्य था, कौन सा पुण्य था- पापानुबन्धित पुण्य; बिन लादेन के पास पुण्य था कौन सा- पापनुबन्धित पुण्य।  हासिल क्या हुआ? बर्बाद हो गया। 

बन्धुओं मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ अपने जीवन में उपार्जित पैसे का सही उपयोग करें, दुरूपयोग मत करो। हमारी संस्कृति में दो लोग हुए, एक भरत चक्रवर्ती और एक रावण। भरत चक्रवर्ती ने सम्पत्ति पाई तो सोने का मन्दिर बनाया, रावण ने सम्पत्ति पाई तो सोने की लंका बनाई। अन्त में क्या हुआ? भरत चक्रवर्ती ने सोने के मन्दिर बनाए, वे मन्दिर आज भी जीवित हैं और उस भरत के नाम से देश का नाम भारत हो गया। रावण ने सोने की लंका बनाई उसकी ईंट से ईंट बज गई, उसका कोई अता-पता नहीं और कोई अपना नाम रावण नहीं रखना चाहता। रावण का कोई नाम नहीं लेना चाहता। अच्छे कार्य में अपना द्रव्य लगाओगे तो तरक्की करोगे, आत्मा की उन्नति करोगे। बुरे कार्य में अपना पैसा बहाओगे तो बर्बाद हो जाओगे, अपने आपको भी बर्बाद करोगे और पूरी सन्तति को बर्बाद कर दोगे। जीवन में कभी एकरूपता नहीं होती। 

आजकल कुछ कुपरंपराएँ विकसित हो गई है। शादी-विवाह की २५वीं और ५०वीं और अन्य अन्य के बहाने लोग अनाप-शनाप पैसा खर्च करने लगे हैं। भारत और भारत से बाहर जाकर के ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने लगे हैं। उसमें मर्यादाविहीन आचरण तक होने लगा है, खान-पान तक में भी कई जगह ऐसी बातें मेरे कान में आई जहाँ जैन समुदाय के लोगों ने भी अपने यहाँ होने वाले समारोह में शराब तक उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। यह महान पाप है। ये अनर्थ है! मैं एक ही बात जानता हूँ जब व्यक्ति का पुराना पुण्य प्रगाढ़ होता है उस समय वह व्यक्ति उस पुण्य के उदय में इतना मदहोश हो जाता है कि उसे कुछ समझ में नहीं आता। लेकिन ध्यान रखना एक न एक दिन यह तुम्हारा पुण्य क्षीण होगा, बहुतों का इसी जन्म में हो जाता है, जन्मांतर में तो होना ही है। दुर्गति को पाओगे इसलिए सही उपयोग करो, फिजूलखर्ची से बचें। यह समझो कि मैंने कितना खट कर्म करके यह पैसा कमाया, इसका सदुपयोग करो, समाज के कल्याण के लिए लगाओ, जनता के उद्धार के लिए लगाओ, मानवता की सेवा के लिए लगाओ, संस्कृति की रक्षा के लिए लगाओ, धर्म की प्रभावना के लिए लगाओ ये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। मैं तो यही आशा और अपेक्षा रखता हूँ – खासकर तुम और तुम जैसे युवको से- कभी ऐसे लोगों का अन्धानुकरण न करो। जो कुछ करो अच्छे कार्य में करो।

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