दर्शन विशुद्धि कैसे बढ़ाएँ?

150 150 admin
शंका

दर्शन विशुद्धि भावना भाने के लिए पूर्व में क्या तैयारी करना चाहिए?

समाधान

सबसे पहले तो हमारा सम्यक् दर्शन पुष्ट हो, अच्छा हो, हम अपना भेद विज्ञान जागृत करें आत्मा के स्वरूप को पहचानें, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को पहचानें और जो सम्यक् दर्शन हमारे जीवन में होना चाहिए वो सब कुछ अपने भीतर घटित करें। इसके साथ हम तत्त्व ज्ञान, तत्त्व भावना का चिन्तन करें और जगत के प्राणी मात्र के कल्याण की भावना मन में जगाएँ। जब तक हमारे ह्रदय में विश्व कल्याण की भावना नहीं होती तब तक दर्शन विशुद्ध नहीं हो सकती। क्षायिक सम्यक् दर्शन हो सकता है, दर्शन विशुद्धि नहीं! दर्शन विशुद्धि का मतलब है- विश्व कल्याण की भावना से अनुप्राणित निर्मल सम्यक् दर्शन! तो स्व के साथ पर का कल्याण प्रगाढ़ रूप से होना चाहिए।

गुरुदेव के अन्दर ये भाव दिखते हैं, वे स्व-पर के कल्याण के लिए कितने ज़्यादा उत्कंठित रहते हैं। ये उनके भीतर की भावना की अभिव्यक्ति है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि उन्होंने दर्शन विशुद्धि करके तीर्थंकर पदवी का बन्ध कर लिया है पर मुझे लगता है बीज तो पड़ गया है। आज नहीं तो कल ऐसा हो सकता है।

Share

Leave a Reply