आजकल छोटे-छोटे परिवार होते हैं, एक-दो सन्तानें होती हैं। हर माता-पिता अपनी सन्तान की बहुत अच्छी परवरिश और संस्कार देते हैं, बावजूद उसके जब बच्चों को अपने जीवन का फैसला लेना होता है और वे कोई गलत फैसला ले रहे होते हैं तो माँ-बाप बड़े मजबूर हो जाते हैं, उनको ऐसा क्या उपाय करना चाहिए कि उनको गलत रास्ते पर जाने से रोक सकें?
मेरी दृष्टि में तो बच्चे फैसला लेने की स्थिति में आयें उससे पहले ही माँ-बाप को सावधान होना चाहिए। बच्चों को प्रारम्भ से ही इस बात को समझाना चाहिए जीवन क्या है और जीवन में अपने जीवनसाथी का चुनाव कैसे करना चाहिए?
जब बच्चा पढ़ने के लिए जाने लगे तो उसे कुछ जगहों पर सावधान करना चाहिए, इस बात के एहसास के साथ कि जीवन में कहाँ-कहाँ दुर्घटनायें हो सकती है। उन्हें न केवल धार्मिक दृष्टि से अपितु बड़े तथ्यात्मक तरीके से इस बात से अवगत कराना चाहिए कि जीवन में हमें किन-किन बातों का विशेष ख्याल रखना है। बच्चे बाहर पढ़ने जाएं, उससे पहले गुरुओं के पास ले जाकर उन्हें कुछ संकल्प दिलाना चाहिए। संकल्प बच्चों के लिए सुरक्षा कवच बनता है। यदि ऐसा करते हैं तो बच्चों के साथ ऐसी स्थितियाँ नहीं आती।
अब रहा सवाल किसी का ऐसा हो गया तो क्या करें? उसके लिए भी प्रयास करना चाहिए। बच्चे अगर सत्संग-समागम में आएं तो बहुत बड़ा परिवर्तन होता है। एक प्रसंग मैं आपको सुनना चाहता हूँ जो इसी शंका समाधान से जुड़ा हुआ है। मैं सम्मेद शिखरजी में था, दिसंबर महीने की बात है। एक युवती मेरे पास आई, उसने मुझ से निवेदन किया कि ‘मैं आप से कुछ मार्गदर्शन लेना चाहती हूँ।’ मैंने पूछा “क्या बात है?” वह सनफार्मा में काम करती थी, अच्छे पद पर थी। उसने कहा ‘मैं दीपावली की छुट्टी में अपने घर आई और मैंने आपका शंका समाधान सुना। शंका समाधान में सब तरह की बातें आईं। तब से मैं बड़ी प्रभावित हुई। मैं नियमित आपका शंका समाधान सुनती हूँ, आने में विलम्ब होता है, तो मैं रिकॉर्डिंग मोड में लगा कर के जाती हूँ। महाराज जी! मेरा एक अजैन लड़के से ८ सालों से अफेयर चल रहा है। मेरे पेरेंट्स इसके अगेंस्ट है। आपको सुनने के पहले तक तो मैंने सोच लिया था कि मुझे किसी भी हालत में अपने निर्णय से हिलना नहीं है। आपको सुनने के बाद मुझे लगा कि शायद ऐसा करना जल्दबाजी होगी। महाराज जी! मैं आपके पास आई हूँ अपनी स्थिति बताना चाहती हूँ, आप बताएँ मैं क्या करूँ? आप जैसा कहोगे मैं वैसा करूँगी, मुझे थोड़ा एकान्त चाहिए।’ बहुत सारे लोग बैठे थे, मैंने सबको अलग करके उनकी पूरी बात सुनी। जब मैंने पूछा “किससे?” वो बोली ‘लड़का भी साथ में आया है।’ वो एक नेमा या खत्री लड़का था। “कहाँ?” ‘यहीं, गुनायतन में रुका है। इसको तैयार करके, एकदम प्रीपेयर करके लाई हूँ। मैंने कह दिया है कि महाराज जी का आशीर्वाद मिलेगा तो हम लोगों का साथ आगे बढ़ेगा और महाराज जी नहीं कहेंगे तो मैं भी स्वीकारुँगी, तुम्हें भी स्वीकारना होगा।’ दोनों आए, मैंने बातचीत की, मैंने समझाया, दोनों ने तय कर लिया कि ये रास्ता हम लोगों के अनुकूल नहीं हैं। महाराज जी जैसा बता रहे हम वैसा ही करेंगे और निर्णय ले लिया या तो शादी ही नहीं करेंगे और शादी करेंगे तो माँ-बाप के अनुकूल करेंगे। आपस में शादी किसी स्थिति में भी नहीं करेंगे, यह परिवर्तन बच्चों में आता है।
ऐसे एक नहीं अनेक बच्चे मुझसे जुड़ने के बाद अपने जीवन में परिवर्तन लायें हैं इसलिए हताश नहीं होना चाहिए। हालाँकि, इतने विलम्ब के बाद रिजल्ट अच्छे होने में थोड़ा संदेह रहता है लेकिन फिर भी बच्चों को तथ्यात्मक तरीके से समझा कर स्थिर किया जा सकता है।
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