गुरु की अनुपस्थिति में समाधि कैसे करायें?

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शंका

अगर कोई व्यक्ति मरणासन्न है और गुरुओं का समागम नहीं है, तो उसकी समाधि कैसे करवाएँ?

समाधान

समाधि, जो विधि पूर्वक प्रत्याखान करते हुए होती है वह उत्तम समाधि मानी जाती है। लेकिन कभी-कभी किसी व्यक्ति के पास इतना टाइम नहीं रहता कि वह समाधि कर ले। तो उसको सुमरण की श्रेणी में या सम्यक्त्व मरण की श्रेणी में ले सकते है या संक्षेप प्रत्याखान की विधि की दृष्टि से कहें, तो यह एक प्रकार की समाधि भी कही जा सकती। लेकिन उस समय क्या करें? जब भी किसी व्यक्ति की ऐसी स्थिति हो तो उस समय उसके होश-हवास के रहते सबसे पहले सभी जीवों से क्षमा मंगवाएं, सभी जीवों को क्षमा करें, उस व्यक्ति को संबोधें कि अब तुम्हारा कुछ भी नहीं है, यह शरीर भी तुम्हारा नहीं, परिवार तुम्हारा नहीं, सम्पत्ति तुम्हारी नहीं, तुम्हारा कुछ भी नहीं, तुम अपने आत्म तत्त्व को पहचानने की कोशिश करो। उसका आत्मबोध जगाएँ और आत्मबोध जगाने के उपरान्त उसके सब प्रकार के आहार पानी का त्याग करा दें, उसकी स्थिति को देखते हुए आहार पानी का त्याग कराएं। इस व्यक्ति की यदि कुछ सुनने समझने की स्थिति है, तो उसे समझाएँ, उससे परिग्रह का त्याग करवाएँ, णमोकार मन्त्र का उच्चारण कराएँ। कुछ नहीं है, तो ‘अर्हंत सिद्ध-अर्हंत सिद्ध, सोहम-सोहम’ की जाप कराएँ, ऐसी स्थिति में व्यक्ति शुभ परिणाम पूर्वक अपने देह को छोड़ सकता है और ऐसे मरण को सम्यक्तव मरण या सुमरण की संज्ञा दी गई है। ऐसा करके भी व्यक्ति अपने जीवन का कल्याण कर सकता है पर यह कार्य अत्यन्त विचार और विवेक के द्वारा करना चाहिए। उस व्यक्ति की सुनने की कितनी क्षमता है उसके पास समय कितना है, लम्बा चौड़ा उपदेश देने के लायक उस समय वक्त नहीं रहता, बहुत विचार और विवेक के साथ काम करना चाहिए।

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