आज प्रत्येक माता पिता चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे और संस्कारवान बने। लेकिन बच्चों के प्रति सबसे बड़ी चिंता और चिंतन का कारण आज यह हो गया है कि बच्चों की जीवनशैली, कार्यशैली, व्यवहार, आदर्श, संस्कार गिरावट की ओर जा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? इसमें कैसे सुधार किया जाए?
संस्कार जीवन का एक मूल्यवान तत्व है। लेकिन यह संस्कार संगति से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। तो अपने बच्चों पर अच्छे संस्कार डालें और संस्कार डालने के साथ साथ उनकी संगति को ध्यान में रखें। मैंने पाया है अच्छे-अच्छे संस्कारी लोग भी अच्छी संगति के अभाव में भटक जाते हैं। तो जो भटक रहे हैं उनकी संगति को ध्यान में रखें। अगर उनकी अच्छी संगति बनी रहे, अच्छी प्रेरणा मिलती रहे तो उनके संस्कार कभी नष्ट नहीं होते हैं। हालांकि प्रारंभ से यदि किसी पर संस्कार सही ढंग से आरोपित किए जाएं, तो मेरा अनुभव बताता है संस्कार धूमिल भले हो जाते हैं पर नष्ट कभी नहीं होते हैं। उनकी दशा राख से ढंकी अग्नि की भांति होती है, थोड़ी-सी फूँक मारो फिर से दहकने लगती है। तो संस्कार आरम्भ से डालें। लेकिन ध्यान रखना संस्कारित माता पिता ही संस्कारित संतान को जन्म दे सकते हैं या अपने संतान को संस्कारित बना सकते हैं। संस्कार के लिए खुद को संस्कारित होना पड़ेगा।
अच्छे संस्कार दें, अच्छी संगति दें और उनके लिए प्रेरणा का एक बहुत अच्छा माध्यम होता है गुरुजनों का सानिध्य। शुरू से व्यक्ति यदि सत्संग प्रेमी हो जाए तो उसके जीवन में ज़बरदस्त बदलाव आ सकता है। आज की युवा पीढ़ी को हम बहुत देर से बताते हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए बचपन से ही उनमें सांस्कृतिक रुचि जगाने की, उनके भीतर संस्कारों को उभारने की। यदि हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो बच्चे कभी भटक नहीं सकते।
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