यदि कोई हमारे प्रति ईर्ष्या भाव रखता है, तो उसके प्रति समता का भाव कैसे रखें?
यदि कोई हमारे लिए ईर्ष्या का भाव रखे तो उसके प्रति हम समता भाव कैसे रखें? बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। पहली बात तो ये कि मेरे मन में किसी के प्रति ईर्ष्या भाव न रहे, ये सावधानी रखें। अब रहा सवाल, दूसरों के मन में ईर्ष्या भाव हो तो? ये तो होती ही है। प्रायः लोग गुणियों से ईर्ष्या करते हैं, अवगुणियों से नहीं। आप देखोगे कि सतियों से और साधुओं से ईर्ष्या करने वाले लोग मिलेंगे, वेश्याओं और डाकुओं से ईर्ष्या रखने वाले लोग नहीं होते हैं। तो पहली बात तो मैं कहूँ, कि यदि तुम्हारा कोई नया ईर्ष्यालु पैदा हुआ हो तो अपने भीतर झाँक कर देखना, कि आपके अन्दर जरूर कोई नया गुण प्रकट हुआ होगा। इसलिए कोई ईर्ष्या करे तो हम घबराएँ नहीं। ये सोचें कि आग उसके मन में लगी है मेरे मन में नहीं। हम उसके प्रति द्वेष भाव न लाएँ, क्योंकि जो ईर्ष्या करेगा वो भोगेगा। उसमें मेरा क्या बिगड़ेगा? मन में ऐसा भाव जगाना चाहिए।
फिर भी किसी के मन में ईर्ष्या है, और उसका हमको पता लग रहा है, तो उसके प्रति विशिष्ट प्रेम की अभिव्यक्ति करो। हो सकता है कि तुम्हारे प्रेम के बल पर उसकी ईर्ष्या के भाव समाप्त हो जाए। रविन्द्र नाथ टैगोर को जब नोबेल पुरस्कार मिला पूरे देश से उनके लिए बधाइयों को संदेश आया, प्रशंसा पत्र आये। उन बधाइयों और प्रशंसा पत्रों के बीच एक व्यक्ति ऐसा था जिसने बहुत प्रशंसा की थी, पर वो सब के बीच यही बात फैलाता था कि रविन्द्र नाथ टैगोर ने जुगाड़ से नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया है। वो नोबेल पुरस्कार के लायक व्यक्ति नहीं हैं, ये गलत है। ये जोड़-तोड़ से हुआ है। रविन्द्र जी को इसका पता चला तो वो एक दिन सुबह टहल के लौट रहे थे और सीधे उसके घर चले गये और चरण छू लिए और प्रणाम करते हुए बोले कि ‘आशीर्वाद चाहता हूँ आपका। आपकी कृपा से मुझे ये बहुत बड़ी उपलब्धि मिली है।’ सामने वाला तो एक दम भौंचक्का रह गया- ‘जिस आदमी की मैं सब तरफ बुराई करता हूँ, वो आदमी आज मेरे पाँव पड़ रहा है। अपनी उपलब्धि का श्रेय मुझे दे रहा है।’ उसने उन्हें गले से लगाया और कहा कि नहीं मैं भूल में था। तुम जैसे व्यक्ति ही नोबल पुरस्कार के अधिकारी हो। आज मेरी बहुत बड़ी भ्रांति का निवारण हुआ।
प्रेम के बल पर सामने वाले के द्वेष को, ईर्ष्या के भाव को जीता जा सकता है। उसके प्रति हम बहुत आदर प्रकट करें, उसके गुणों की प्रशंसा करें, उसे प्रोत्साहित करें, और ऐसा सदस्य यदि घर परिवार में है, तो अपनी उपलब्धि का श्रेय उसको देना शुरू कर दें। अगर मुझे कोई उपलब्धि हासिल हुई, दुनिया मेरी प्रशंसा कर रही है, तो उस समय ये कहें कि मेरा रोल नहीं है मैं सामने जरूर रहा लेकिन पीछे से ये थे। सारा क्रेडिट (श्रेय) उनको देना चाहिए। उसका पेट भर जायेगा। आपका क्या बिगड़ेगा। काम बढ़िया हो जायेगा। थोड़ा आप श्रेय देने लगे तो ईर्ष्यालु कोई पैदा ही नहीं होगा। दोनों चीजें ध्यान में रख कर चलना चाहिए।
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