मम्मी दिन भर कहती है कि- “पढ़ाई कर ले बेटा, पढ़ाई कर ले”; पढ़ाई करना जरूरी होता है, तो खेलना भी तो जरूरी होता है?
जितनी देर पढ़ो, उतनी देर खेलो, बैलेंस बना करके चलो। केवल खेलना भी ठीक नहीं और ज़्यादा पढ़ना भी ठीक नहीं। मैं उन माताओं को कहना चाहता हूँ जो बच्चों पर पढ़ाई का ज़्यादा दबाव डालते हैं। आजकल के parents बच्चों पर जरूरत से ज़्यादा मानसिक दबाव बना देते हैं- “पढ़ो, पढ़ो, पढ़ो; अच्छा rank आना चाहिए, अच्छा percentage आना चाहिए”; rank holders कई बार जीवन व्यवहार के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं। देखना है, तो बच्चों में तीन चीजें देखो- गंदी आदत तो नहीं है, गंदी संगति में तो नहीं जीता; और बात मानता है या नहीं? यदि ऐसी चीज है, तो समझ लो तुम्हारा बेटा meritorious, तुम्हारी सन्तान मेरिट में आने लायक है। पढ़ाई करें, अपना काम करें, course complete करें।
एक बाप अपने बच्चों के रिजल्ट को देखकर डाँट रहा था, चिल्ला रहा था- “यह भी कोई रिजल्ट है, अंग्रेजी में 9 नंबर, हिंदी में 7 नंबर, गणित में 12 नंबर, सारे रिजल्ट का 12 बजा दिया।” पत्नी ने आवाज सुनी- “अरे! क्यों चिल्ला रहे हो इतना जोर जोर से”? पति ने रिजल्ट दिखाते हुये कहा- “ये भी कोई रिजल्ट है?” पत्नी ने उसे पति के आगे बढ़ाते हुए कहा – “जरा ध्यान से देखो कि किसका रिजल्ट है।” पता लगा ये उसी का रिजल्ट था। जो बाप खुद ऐसा है वह अपने बच्चे को क्या कहेगा? इसलिए जरूरत से ज़्यादा लोड मत करें।
धर्म की शिक्षा के लिए उन्हें जब अवकाश हो, गर्मी आदि की छुट्टियाँ हो तो उनके लिए ग्रीष्मकालीन शिविर आदि लगाकर के भी आप धर्म की शिक्षा दे सकते हैं। शनिवार-रविवार को पाठशाला के माध्यम से भी दे सकते हैं।
Mehra ji aap Khade hoke kyo khate ho