धार्मिक संस्कारों को जीवन भर अपने आचरण में उतारने के लिए क्या करें?
रूचि जैन, सागर
धार्मिक संस्कारों को अपने आचरण में उतारने के लिए बस अपनी बैटरी को चार्ज रखना चाहिये। संस्कार अच्छे हो यह माँ-बाप और परिवार के ऊपर निर्भर करता है। गुरुजनों का सान्निध्य भी हमारे संस्कारों को उभारने में बहुत बड़ा निमित्त बनता है लेकिन संस्कारों को टिकाये रखने के लिए संगति को बनाए रखना भी जरूरी होता है। संगति से संस्कार प्रभावित होते हैं। अच्छे संस्कार युक्त सन्तान भी अगर गलत संगति के शिकार हो जाये तो भटकने में देर नहीं लगती। मेरे सम्पर्क में अनेक लोग हैं लेकिन संगति बिगड़ी और वह चले गए। मैं एक उदाहरण देता हूँ- एक बहन जी, एक्स्ट्रा ब्रिलियंट लड़की, आचार्य श्री से उसने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया। कभी नजर उठा कर ऊपर नहीं देखी, उसकी प्रतिभा देख आचार्य महाराज ने उसे आ.ए.एस करने के लिए कहा। उसने आ.ए.एस की परीक्षा में 8वां रेंक और लड़कियों में पहला रेंक पाया। वह आ.ए.एस हुई लेकिन इतने अच्छे संस्कार लेने के बाद भी एक चौहान लड़का जो केरल कैडर का था उससे अफेयर हो गया और उससे शादी कर ली, जैन धर्म छूट गया। अच्छे संस्कार होने के बाद भी संगति बिगड़ने से जैन धर्म छूट गया। यह उदाहरण है इसलिए माँ-बाप को चाहिए कि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और संस्कार देने के बाद भी बच्चों की संगति पर ध्यान दें। उनकी संगति अच्छी हो। संगति अच्छी बनी रहेगी तो बच्चे भटकेंगे नहीं और समय-समय पर गुरुओं का सानिध्य उन्हें मिलता रहे ताकि वह अपने दिल की बात कह सकें। बिगड़े हुए वातावरण में मन बिगड़ता है या कोई गलती होती है तो उसे सुधार सकें और अपने आप को सम्भाल सकें।आज मैं कुछ बच्चों से बात कर रहा था जो कॉलेज में इंजीनियरिंग और एम.बी.ए वगैरह के छात्र थे, लड़कियाँ थीं, मैंने उनसे पूछा कि आज का क्या वातावरण है बताओ? तो उन बच्चों ने कहा महाराज 95 परसेंट लड़के बिगड़े हैं और एक टिप्पणी की-कि महाराज लड़कों से ज़्यादा लड़कियाँ बिगड़ी हैं। यह सच्चाई है। मैं समझता हूँ जितने लड़के और लड़कियाँ बैठी हैं मेरी बात से सहमत होगीं कि मैं गलत तो नहीं कह रहा। ये आज का माहौल है। आज- कल के बच्चे यदि अपने आप को बचा कर काजल कोठरी से बेदाग आते हैं तो उनको बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवधि में अपने आप को बचाने का एक उपाय है, वो है दृढ़ संकल्प। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि विदेश जाते समय मेरी माँ ने मुझे ‘बेचरदास जी दोशी’ जो एक जैन साधु थे उनसे अगर यह तीन प्रतिज्ञा “माँस नहीं खाना, मदिरा नहीं पीना और पर-स्त्री सेवन नहीं करना” नहीं दिलाई होती तो मैं भ्रष्ट हो गया होता। वह लिखते हैं कि मेरी यह तीन प्रतिज्ञा ही मेरे जीवन का सुरक्षा कवच बनीं। इसलिए मां-बाप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और बच्चे उन संस्कारों को जगा के रखें और धार्मिक भावनाओं को दृढ़ रखें।
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