एकाग्रता (concentration) बढ़ाने का उपाय!

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शंका

कोई भी मुद्दा हो या कोई भी टॉपिक हो, तो आपका (महाराज श्री) ध्यान उसकी तरफ या आपकी एकाग्रता शक्ति उसकी तरफ बहुत जल्दी चली जाती है, जिससे हम बहुत प्रभावित हैं। आपने अपने शुरुआती दिनों में ऐसा क्या किया था? हम लोग अपनी एकाग्रता शक्ति (कंसंट्रेशन पॉवर) को कैसे बढ़ाये?

समाधान

आपने पूछा कि इनिशियल स्टेज में मैंने क्या किया था? मैंने कुछ नहीं किया था, मैं तो एक एवरेज स्टूडेंट था, बस मैंने अपने जीवन में एक ही चीज की है- जो काम किया है, डूब कर किय। जिस समय किया वही काम किया, उस समय कोई दूसरा काम नहीं किया। 

कल एक रिपोर्ट आई है- मल्टीटास्किंग के दुष्परिणाम की! आजकल लोग एक कार्य के साथ अनेक कार्य करते हैं, बात भी कर रहे हैं, मोबाइल भी सर्च कर रहे हैं, गाना भी सुन रहे हैं, खाना भी बना रहे हैं और इधर-उधर ताक- झाक भी कर रहे हैं, पुस्तक को भी पलट रहे हैं। आप लोग एक काम यहाँ करते, प्रवचन भी सुन रहे हैं, माला भी गिन रहे हैं, यह सब कार्यक्रम चलता रहता है; यह मल्टीटास्किंग होती है और इसका बड़ा कुपरिणाम बताया है। इसका असर हमारे ब्रेन पर पड़ता है, ऐसे लोगों की कार्य क्षमता कम होती है, मेमोरी वीक होती है और कई तरह के न्यूरो रिलेटेड प्रॉब्लम भी हो जाती हैं। तो यह चीजें बहुत नुकसानदेय होती है। 

मैं समझता हूँ कि मैं आज जो कुछ भी हूँ, शायद इस वजह से हूँ कि मैं जो करता हूँ, डूब कर करता हूँ जब भी मैं पढ़ता हूँ, तो पढ़ते समय मेरे सामने कोई दूसरा नहीं होना चाहिए। मैं जब पढ़ता हूँ तो पूरी तरह विषय में डूब जाता हूँ और पढ़ता नहीं हूँ, पूरे पेपर को स्कैन करता हूँ। अपने माइंड में फिट कर लेता हूँ और वह समय पर आकर के प्रकट हो जाता है। उसको फाइलिंग करने का एक तरीका है, जिससे मैं फाइल करता हूँ। 

आपसे मैं कहूँगा कि मल्टीटास्किंग से बचिए। नंबर वन – जिस समय जो काम करना है, वही काम कीजिए। नंबर दो -कार्यों की प्राथमिकताएँ सुनिश्चित कीजिए- ‘मुझे कब, कौन सा काम करना है?’ हमारे पास जितना समय हो, उस समय के अनुसार सबसे जरूरी काम को पहले कीजिए और बाकी काम को बाद में कीजिए। अगर ऐसा आप करेंगे, तो आप का चित्त कभी नहीं भटकेगा। अपने ध्येय के प्रति समर्पित रहेगा, तो आप अपने जीवन में सफल रहेंगे। आजकल लोगों का मन भागता है, कभी इधर सोचता है, कभी उधर सोचता है। कभी यह कर लूँ, कभी वह कर लूँ और १० लोगों से मिसगाइड होता है; वह नहीं होना चाहिए। 

दूसरी बात हम पर गुरु की कृपा है, जो मैं महसूस करता हूँ, गुरु की कृपा हमारे जीवन को बहुत ऊँचा उठाती है और मैं अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझता हूँ, जिस दिन मेरा संघ में प्रवेश हुआ उसी दिन गुरुदेव ने मुझे आशीर्वाद दिया और सीधे तत्वार्थ सूत्र पढ़ाना शुरू कर दिया। मेरे जैन धर्म की शुरुआत सीधे तत्वार्थ सूत्र से हुई, उस समय मुझे चौबीस तीर्थंकर के नाम भी याद नहीं थे और उनकी कृपा है, आज जो कुछ भी हूँ, मैं उसी वजह से हूँ।

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