ससुराल में सामंजस्य कैसे बैठायें?

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शंका

मैं ससुराल में सबसे छोटी बहू हूँ, जेठानियाँ हर वक्त मुझ पर रूबाब झाड़ती हैं, ताने देती हैं, आर्डर देती हैं, सारा काम भी मुझे ही करना पड़ता है। कुछ दिन तो सह लिया पर अब सहन नहीं होता कभी-कभी जवाब दे देती हूँ। घर का माहौल तनाव पूर्ण हो जाता है अब आप ही कोई उपाय बताएँ, मैं क्या करूँ?

समाधान

सब से मिलकर वही रह सकता है जो सब को सह जाये। यदि आप घर की छोटी बहू हो तो आप छोटी बन कर ही रहो; बड़ी बहुएँ यदि अपना काम नहीं करती हैं, तो आप उसकी परवाह न करें, आप अपने काम को enjoy (मज़े) कर के करें। ये मान कर के चलें कि ‘मैं छोटी भले हूँ लेकिन एक अच्छा कार्य करके चल रही हूँ घर में शांति का वातावरण है और थोड़ी मेहनत करने से मेरा स्वास्थ्य भी अच्छा हो जायेगा।’ यदि आप इस बात को लेकर के चलती हो तो आपकी सहन शक्ति बढ़ती है और सारा कार्य हो जायेगा। 

एक परिवार में तीन बहुएँ थी और चौथी बहू बाद में आयी। तीन बहुएँ ऐसी थीं जिनमें रोज महाभारत होता था। घर के सारे लोग परेशान थे। सब की सब निकम्मी-कोई काम करना नहीं चाहती थीं। सुबह की शुरूआत किच-किच से होती थी। चौथी बहू जब घर पर आई तो आने से पहले ही उसके कानों में ये बात पहुँच गई कि ‘ये घर तो बड़ा विचित्र घर है तुम इसमें कैसे निर्वाह करोगी?’ लेकिन विदा होते समय उसकी माँ ने जो शिक्षायें और प्रेरणा दी उसे उस पर विश्वास था। घर आई और घर वातावरण देखा, प्रथा है कि तीन दिन तो नई बहू कुछ करती ही नहीं है। नौकर पर्याप्त थे सारा काम हो गया लेकिन कुछ दिन बाद देखा कि यहाँ का तो सारा काम ही उल्टा-पुल्टा है। कोई कुछ नहीं कर रहा है। तो वह किसी की परवाह किये बगैर अपने काम में लग गई। घर की सफाई वह खुद करने लगी और घर का पानी वह खुद भरने लगी, सारा नाश्ता-पानी से लेकर वह सब करने लगी। असर ये हुआ कि रोज़ की किच-किच खत्म हो गई। कुछ लोग भड़काने वाले होते हैं, उनकी ये मंशा रहती है कि कोई सुख से न रह सके। यदि कोई सुकून से रहे तो उनके पेट में दर्द होने लगता है। तो एक पड़ोसन उसको भड़काने के इरादे से बोली कि ‘तुम इतना दब के क्यों रहती हो? सारा काम तुम खुद करती हो इतना दबती क्यों हो?’ उसने बोला कि- “झाडू लगाती हूँ क्योंकि मेरी माँ ने कहा है कि जो घर में झाडू लगाते हैं उनके घर में दरिद्रता नहीं आती है। मेरे को तो इतना पता है कि मेरे घर में जितनी साफ-सफाई रहेगी मेरे घर की दरिद्रता उतनी ही जायेगी और मेरे मन की दरिद्रता जायेगी तो मैं मजबूत, समृद्ध बनूँगी। घर का पानी तो मैं पीने के लिए भरती हूँ, प्यासे को पानी पिलाने से पुण्य मिलता है। हम इस पुण्य के मौके को क्यों चूकें? मैं खाना बनाती हूँ, तुम को ऐसा लगता है। मैं खाना नहीं बनाती, मैं तो भूखे को भोजन कराती हूँ। मेरी माँ ने कहा है कि भूखे को भोजन कराना सबसे बड़ा धर्म है। ये सब मैं कर्म नहीं अपना धर्म मान कर करती हूँ, मुझे कोई तकलीफ नहीं है।” जब उसने ये जवाब दिया तो सामने वाली तो दंग रह गई और ये संदेश जब उसकी जेठानियों तक पहुँचा तो उन्होंने कहा कि जब पुण्य ही कमाना है, तो इस अकेले को क्यों कमाने दो, सब मिल जाओ और सब मिलकर काम करने लगीं। तो एक सहनशील बहू के कारण घर का ढाँचा बदल गया

बन्धुओं आज घर-घर की ये कहानी है काम थोड़ा होता है लेकिन तकरार ज्यादा होती है। काम को काम मत मानिये, काम को अपना धर्म मानिये। एक उत्तम गृहणी के पाँच गुण होते हैं। पहला-पति परायणता, दूसरा-धर्मशीलता, तीसरा-कार्य कुशलता, चौथा-मितव्ययिता और पाँचवां-कुलीनता। ये कार्यकुशलता एक गृहणी का लक्षण है। आप गृहणी हो, छोटी हो; थोड़े दिन आप और सहो। आप खुद अपने मन से पूछो कि आप जब उनकी बातों को सहती थीं तब ज्यादा खुश रहती थीं कि जब जवाब देकर महाभारत करती हो, तब ज्यादा खुश हो? हमेशा ध्यान रखना कि सहने वाले को सदैव सुख मिलता है और लड़ने वाले के पास सदैव खोने को होता है, पाने को कुछ नहीं इसलिए जीवन में कुछ पाना हो तो सह करके ही पा सकते हो लड़कर नहीं।

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1 comment
  • Mona May 28, 2023 at 11:03 am

    Guru g meri abi shadi huyi hai or mere sab kam karne s sab khus hai par meri sas kam krne par bhi dukhi hai or kam na krne par bhi dukhi.. Me sab kam krleti hu to kehti hai mujhse koi kam ki na kehti mujse adhikar chin liya h.. Or jab kehti hu y kam krlo to kehti hai ki sab me hi karu mujhpe na ho raha. Mere sasur pati ye sab dekhte h or kai bar ladai hui hai. Meri koi bhi chiz ek bar kehne par a jati hai par unke sath esa nahi hota unko lgta h khana bnane ya kam krne s y log meri taraf jada jhuk gye hai to wo bhi y krne lgti h jbki unko asthma ki dikkat hai. Unke karan hum pati patni bhi itna ld jate h ki kya btaye bas 6 month m itna sab ho gya ki ldaiya jada bad gai hai koi upay btao plz… 🙏🙏🙏

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