विपरीत परिस्थियो में भी मन पर संयम रखें

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शंका

विपरीत स्थितियों में भी अपने मन पर संयम रखते हुए हम किस प्रकार से धर्म मार्ग पर चलें?

समाधान

विपरीत स्थितियों में अपने मन को संभालना ही हमारा सबसे बड़ा पुरूषार्थ  है; और कब ऐसी संभाल की जा सकती है? यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है, अगर आप अपने आप को विपरीत परिस्थितियों में संभालना चाहते हैं तो कुछ TIPS देता हूं। 

सबसे पहली बात- आप विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मन को संभालना चाहते हो तो प्रतिकूलता में अनुकूलता हो खोजना शुरू करो। ‘प्रतिकूलता में अनुकूलता’- परिस्थितियां विपरीत हैं तो हम अपने मन को उसके अनुकूल बना लें! मतलब,-“चलो जो है सो ठीक है!” प्रतिकूल की अनुकूल व्याखया !

मुझे एक घटना याद आ गई, पंडित जगनमोहन लाल शास्त्री ने मुझे सुनाया था। मध्य प्रदेश की घटना है, बड़ी पुरानी घटना है, लगभग ७० वर्ष पुरानी! रीवा शहर में कुछ धर्म विद्वेशी लोग जैन तीर्थंकर का विमान उत्सव यानी उनकी रथ यात्रा, श्री विहार, नहीं करने देना चाहते थे, वे धर्म विद्वेशी थे ,उससे उनको थोड़ी तकलीफ होती है।  वहां जैन समाज बहुत थोड़ी सी थी तकलीफ़ में थी। एक बार इलाके भर के लोगों ने यह तय किया कि इस बार की महावीर जयंती हम लोग रीवा में मनाएंगे। पूरे विंध्य और महाकौशल अंचल के लोग वहां पहुंच गए और उस उत्सव के लिए रीवा स्टेट के राजा से उन्होंने अनुमति भी ले ली। रीवा महाराज ने अनुमति दे दी, राजा की अनुमति मिल गई तब तो कोई दिक्कत नहीं । लेकिन ये बात वहां के धर्म विद्वेशियों को  नागवार गुजरी और उन्होंने उसके विरोध में STRIKE कर दिया। STRIKE किया तो पूरा वातावरण सूना। पं. जगमोहन शास्त्री, कटनी वाले वहां के मुख्य वक्ता के रूप में गए हुए थे। उन्होंने बताया-” महाराज जी! मुझे प्रथम वक्ता के रूप में वहां बोलने के लिए खड़ा किया गया तो मुझे मेरे गुरु की एक बात याद आ गई कि-“जब परिस्थितियां प्रतिकूल हो तो उसकी व्याख्या अनुकूल कर लो” मैंने अपना वक्तव्य कुछ इस प्रकार से प्रारंभ किया कि- ‘भगवान महावीर की जयंती सारे विश्व में बनाई जाती है, जहां जहां भगवान महावीर के अनुयाई हैं वहां वहां भगवान की जयंती मनाई जाती है। किंतु आज जैसी महावीर जयंती ना तो ना तो कभी कहीं मनी है, ना कभी कहीं मनेगी।’ सभी सुनकर आश्चर्यचकित हो गये  ऐसी क्या बात कर रहे हैं कि आज जैसी महावीर जयंती कहीं नहीं मनी न कभी मनेगी, पूछा क्यों ? अपनी बात को आगे जारी करते हुए मैंने कहा कि-‘आज तक दुनिया में जहां भी महावीर जयंती मनाई जाती है वहां केवल जैनों ने अपने प्रतिष्ठान बंद किए हैं यहां जन-जन अपने प्रतिष्ठान बंद करके महावीर जयंती में शामिल हो रहे हैं।’ लोगों ने सोचा- भैया ! यह तो बंद का उल्टा अर्थ ले लिया। पूरा मार्केट खुल गया, महावीर जयंती अच्छे से मन गई।” 

तो पहला सूत्र -” प्रतिकूल की अनुकूल व्याख्या करो”

दूसरी बात-“हर बात में सकारात्मक बनो”

तीसरी बात-“अपने मन में धैर्य रखो”, यह सोचो कि यह थोड़े समय की बात है; 

और चौथी बात – “आशावादी बने रहो!”

विपरीत परिस्थिति में भी आप अपने मन को संभालने में समर्थ होंगे

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