संघर्ष और विषमताओं में समताभाव कैसे रखें?

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शंका

संघर्ष और विषमताओं में कैसे समता का भाव रखें?

समाधान

समता उसी समय अधिक रखना चाहिए! यदि हम संघर्ष में है और उसी समय अपने अन्दर positive (सकारात्मक) सोच ले आएँ तो संघर्ष की घड़ी में भी हर्ष हो सकता है। जब भी पथ में विषमता आये अपनी सोच को अनुकूल बनाने की कोशिश करो। मनुष्य के सामने जब भी कभी संघर्ष आए तो उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करें और अपनी कुशलता से उसे एक उपलब्धि में परिवर्तित करें, यह मान करके चले कि संघर्ष के बिना हमारे जीवन का उद्धार नहीं होता, हमें जूझना पड़ेगा।

एक पेड़ तभी बड़ा हो पाता है जब हवा-पानी से जूझता है, मौसम से जूझता है, जितना जूझता है उतना मजबूत बनता है। जब भी जीवन में संघर्ष आए तो उससे घबराने की जगह यह सोचें कि “ये मेरे निर्माण की process (प्रक्रिया) शुरू हो गई है, यह मेरे विकास की प्रक्रिया है, यह संघर्ष नहीं है, मैं सफलता की ओर अग्रसर हो रहा हूँ। ये मेरे जीवन के लिए एक उपलब्धि के रूप में परिवर्तित होगी।” आचार्य गुरुदेव ने मूक माटी में लिखा है “संघर्षमय जीवन का उपसंहार हर्षमय होता है। अभी संघर्ष है कल हर्ष होगा” पहली बात यह सोचो कि विषमतायें या विसंगतियाँ जीवन में आएँ तो हम उसे कर्म के उदय के रूप में स्वीकारें। अपनी सोच को पॉजिटिव बनायें। यह सोचिए कि ये थोड़ी देर की बात है, सब बदल जाएगा। अपने अन्दर आशावादी भावना जगा लें, परिणाम अपने आप अनुकूल हो जाएगा।

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