नास्तिक को आस्तिक कैसे बनायें?
नास्तिक को आस्तिक कैसे बनाएँ? देखो मेरी धारणा में जिसे हम नास्तिक मानते हैं उसके भीतर भी कोई आस्तिक छिपा होता है। नास्तिक को आस्तिक बनाने के लिए उससे ज़्यादा तर्क-वितर्क न करें। जब वह सुनना चाहे समझना चाहे तब उसे बताएँ।
मैं एक स्थान पर था, एक परिवार बहुत जुड़ा हुआ था। पर उस परिवार का एक सदस्य ऐसा था जो धर्म से बहुत दूरी रखता था और जब कभी भी धर्म की चर्चा आती थी तो उसको चिढ़ सी छूटती थी। संयोगतः वो लोग उसे मेरे पास लेकर आए। अपनी बहनों के दबाव में आ कर बैठा, बातचीत चली, उसकी बहनों ने कहा- ‘महाराज! इसको मन्दिर के लिए कहें तो कहता है “मंदिर जा कर क्या करूँगा? वह तो लेडीज क्लब है!” हम बोले- ‘क्या बोलते हो?’ वो बोला – “महाराज! मन्दिर में और क्या होता है? मन्दिर में आप देख लीजिए लेडीज़ लोग क्या करती हैं?” मैंने कहा ‘भैया! ठीक कहते हो! तुम लोगों के लिए पान की दुकान है, चाय के ठेले हैं। उनके लिए तो एक ही स्थान है। वे कहाँ जाएँगी?’ लेकिन उसकी धारणा बिल्कुल उल्टी थी। जब वह मेरे पास बैठा, मैंने उससे कहा कि ‘भाई तुम धर्म से दूर क्यों रहना चाहते हो?’ बोला- “महाराज जी! मुझे धर्म का कोई सीधा लाभ नजर नहीं आता इसलिए मैं धर्म से दूर रहना चाहता हूँ।” हमने कहा ‘धर्म का लाभ क्या चाहते हो तुम?’ बोला- “महाराज जी लोग धर्म करते हैं उसके बाद भी उनके जीवन में दुःख और संकट होते हैं। तो फिर धर्म का क्या लाभ?” हमने कहा- ‘नहीं! धर्म का यह लाभ है ही नहीं कि दुःख और संकट का निवारण हो जाए। सच्चे अर्थों में तुम धर्म को धारोगे तो दुःख और संकट में स्थिरता रख सकते हो। तुम कहते हो कि ‘धर्म का कोई लाभ नहीं’ मैं तुमसे सवाल करता हूँ, ‘क्या अपनी बैड हैबिट्स को तुम पसन्द करते हो?’ बोला- ‘नहीं’; मैंने कहा ‘तुम अपने अन्दर की दुर्भावनाओं को पसन्द करते हो?’ बोला “नहीं”; हमने पूछा- ‘तुम अपने जीवन के उतार-चढ़ाव में ठहराव लाना चाहते हो?’ बोला “हां” मैंने कहा- ‘फिर यही तो धर्म है। फिर क्यों कहते हो कि हमको धर्म से कोई लगाव नहीं? धर्म के स्वरुप को समझोगे तो बहुत अन्तर आएगा।’
जैसे मैंने कहा, कई नास्तिक कहने वाले लोगों के भीतर भी कहीं आस्तिकता छिपी होती है। समय पर उसे उभारने भर की देर है। एक बार एक debate (वाद-विवाद) हुआ- ‘परमात्मा है या नहीं?’ डिबेट में एक युवक ने ज़बर्द्स्त तर्क प्रस्तुत किये और उसकी तर्कना का ये असर पड़ा कि ५००० लोग जो उस सभा में थे वो आस्तिक से नास्तिक बन गये। याद रखना नास्तिक को बहुत समझाने और सुनाने की जगह उसकी अन्तरात्मा को जगाने का प्रयास करना चाहिए। अगर आत्मा जग गई तो उसके जीवन की धारा बदल सकते हैं।
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