हमने मनुष्य जन्म के साथ दुर्लभता से श्रावक कुल को प्राप्त किया है, तो इस दुर्लभता को कैसे सार्थक बनाएँ?
दुर्लभ को सार्थक बनाने का एक ही उपाय है, उसका हम सही प्रयोग करें। दो शब्द हैं योग और प्रयोग- योग का मतलब है किसी वस्तु का किसी अवसर का लाभ मिलना; पर लाभ मिलने पर या योग मिलने पर आप उसका प्रयोग करें ये जरूरी नहीं। आपको योग मिला कि आपके घर के नजदीक मन्दिर हुआ। घर के नजदीक मन्दिर का होना योग है लेकिन आप मन्दिर जाओ, यह उसका प्रयोग है। तो मन्दिर का योग मिल जाए पर मन्दिर का योग मिलने पर आप प्रयोग करें, ये कोई जरूरी नहीं। इंसान के साथ मन्दिर में जाने का योग जुड़ता है, इसी तरह अनेक प्रकार के अच्छे योग मिलते हैं। ये दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला, देखा जाए तो रत्नों से भी मूल्यवान जीवन मिला पर इसका हम प्रयोग करेंगे तभी इसकी सार्थकता है। इसलिए हम योग का सही प्रयोग करने की कोशिश करें। जैसे किसी को रतन मिल जाए और उससे वो कौआ उड़ाए तो उसको हम क्या कहेंगे? पागल ही न। तो जो लोग दुर्लभ मनुष्य जीवन को पा करके उसका सही प्रयोग नहीं करते, वो महा-अभागे हैं और हमें उन्हें इस बात का बोध कराने की जरूरत है कि ‘भाई! योग का मिलना भी दुर्लभ पर इसका सही प्रयोग करना महा दुर्लभ है, योग तुम्हें मिल गया प्रयोग करने में कोई चूक मत करो।’
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