मन्दिर के पुजारी को तनख्वाह देना क्या निर्माल्य की श्रेणी में आता है?
मंदिर में जो पुजारी है वह पूजा करता है, आपकी व्यवस्था बनाता है। उसका भरण पोषण तो होना ही चाहिए और अच्छे से होना चाहिए, इसमें कसर नहीं होनी चाहिए। पर इसके लिए एक काम करना चाहिए कि जो मंदिर में पूजा अर्चा आदि करते हैं, उन्हें आपस में कुछ राशि एकत्र (collect) करके उसे वेतन के रूप में न देकर, सहयोग के रूप में, वो राशि देनी चाहिए। वो राशि मन्दिर की न हो अपितु मन्दिर में पूजा करने वाले पुजारियों के द्वारा एकत्र राशि हो।
मैं तो पूरी समाज से और पूरे देश में जो लोग सुन रहे हैं उनसे कहना चाहता हूँ कि आप जिस मन्दिर में रोज पूजा करते हो, घंटे-डेढ़ घंटे उस मन्दिर का उपयोग करते हो, उसके उपकरणों का उपयोग करते हो, उसकी बिजली का उपयोग करते हो, उसके पानी का उपयोग करते हो, उसके द्रव्य का उपयोग करते हो, उसके वस्त्रों का उपयोग करते हो, उसका किराया कितना होगा? दान तो बाद की बात है। एक घंटा पुण्य कमा रहे हो उसके लिए क्या कर रहे हो? तो कुछ अंश दान मन्दिर के रखरखाव व व्यवस्था के लिए जरूर देना चाहिए और उसी में से एक हिस्सा जो उस मन्दिर का पुजारी है, उसे देना चाहिए। जितने लोग पूजा करते हैं उनको सोचना चाहिए कि ‘यह पुजारी हमारी व्यवस्था बनाता है, उत्तम व्यवस्था बनाता है, जिसके कारण हमारा समय बचता है और हम भगवान की अच्छी से अच्छी पूजा कर लेते हैं। एक पूजा अधिक करने की अनुकूलता बनती है। पुजारी भी हमारा सहधर्मी है, उसके भी बाल-बच्चे हैं, उसका भी परिवार पले।’ तो उसके लिए वेतन देना चाहिए। समाज के समर्थ लोगों को तो ऐसा करना चाहिए कि कोई उसके बच्चे को पढ़ा दे, कोई उसकी और व्यवस्था करा दे और उत्तम व्यवस्था तो ये है कि कोई पुजारी को कोई उत्तम business (व्यवसाय) करा दे ताकि वह भगवान की पूजा के एवज में अपना पेट भरने जैसा पाप न करे। तनख्वाह के रूप में उसे नहीं देना चाहिए, सहयोग के रूप में देना चाहिए। ताकि उसका पेट भी पल जाए और काम भी हो जाए। समाज के लोगों में ये दृष्टि जगनी चाहिए। जिसका प्रायः अभाव दिखता है।
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