हर संडे को हम यहाँ श्यामनगर मन्दिर जी में छोटे बच्चों को पूजन कराते हैं तो हमारे सामने कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं। हर संडे एक ही तरह से पूजा कराते हैं, इतना टाइम लग जाता कि कुछ दूसरी चीज नहीं सिखा पाते तो हम किस ढंग से मेनेज करे?
छोटे बच्चों को पूजा कराने के लिए मंगलाष्टक से शांतिपाठ तक की प्रक्रिया जरूरी नहीं, बच्चों को आप विनय पाठ पढ़ाएँ, मंगल पाठ पढ़ाएँ, पूजा पीठिका अगर पढ़ा सकें तो पढ़ा दें। सीधे मूल नायक की या किसी भगवान की स्थापना करके उनकी पूजा कराएँ। एक महा अर्घ चढ़ा दें जिसमें सब समाहित हो जाते हैं, अलग-अलग अर्घ न चढ़ायें। शांति पाठ, विसर्जन पाठ करा दें, यह लघु रूप पूजन है। पूजन का मतलब यह नहीं कि मंगलाष्टक से लेकर आप सारी प्रक्रिया करेंगे तभी पूजा होगी। पूजा का मतलब है अष्ट द्रव्य से अपनी भक्ति को प्रकाशित करना। आप यदि महावीराष्टक पढ़ते हैं और महावीराष्टक के एक-एक शब्द को पढ़कर के एक-एक अर्घ चढ़ाते है, तो ये भी भगवान महावीर की पूजा हो गई लेकिन ऐसा रोज मत करना। बच्चों के लिए 15 मिनट में आपकी पूजन पूर्ण हो जानी चाहिए। पूजन को इतना lengthy न बनाएं, बच्चों के लिए पूजा इस तरीके से कराएँ कि बच्चे उसे इंजॉय करें और 15 मिनट में पूजन कराने के उपरान्त बच्चों को कुछ सिखाएँ, प्रतियोगिताएँ कराएँ, बच्चों को पुरुस्कृत करें ताकि 1-1.30 घंटे के उनके पूरे कार्यक्रम में सब चीज समाहित हो सके इसलिए कोई जरूरी नहीं कि मंगलाष्टक आप रोज पढ़ायें। मंगलाष्टक बच्चों को सिखा दें ताकि बड़े होकर वह मंगलाष्टक पढ़ सकें। स्वस्ति मंगल पाठ पढ़ना जरूरी नहीं है, विनय पाठ पढ़े और सीधे पूजा की स्थापना करके भी आप पूजा कर सकते हैं। यह पूरी प्रक्रिया की बड़ों की अपेक्षा है बच्चों के लिए नहीं।
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