मेरे घर में मेरे सास-ससुर व्रती हैं और बाकी लोग अव्रती हैं। मैं व्रती और अव्रतियों में कैसे सामंजस्य बिठाऊँ जिससे कोई भी खुद को अपेक्षित न समझे?
आपका सौभाग्य है कि आपके घर में व्रती हैं। प्रायः किसी के घर में कोई व्रती हो तो लोग उसको बोझ मानाने लगते हैं, यह भ्रम है। घर में साता वेदनी कर्म के आस्रव का एक विशेष निमित्त रोज बना हुआ है। शास्त्रों में कहते हैं, कि यदि आप व्रती के प्रति सत्कार का भाव रखते हैं तो साता वेदनी, उच्च गोत्र और यश-कीर्ति जैसे महान पुण्य प्रगतिओं का बन्ध करते हैं। वे लोग भाग्यशाली हैं जिनके घर में व्रती हैं और उन्हें अपने घर के व्रती बुजुर्गों की सेवा केवल अपने घर के बुजुर्ग या मां-बाप मान कर नहीं कर चाहिए, अपितु अपने कल्याण का आधार मान कर के उनकी सेवा पूरे मन से करनी चाहिए।
कोशिश करनी चाहिए कि- “मैं व्रत का पालन नहीं कर पा रही हूँ, लेकिन कम से कम जो मेरे घर में हैं उनके व्रतों के निर्वाह में मैं सहायक तो बन जाऊँ! सहायक न बनूँ तो बाधक तो न बनूँ।” ऐसी क्रिया करो, ऐसी चर्या करो कि तुम्हारी किसी क्रिया से उनको कोई कठिनाई न हो। वह अपने धार्मिक आवश्यक कार्यों में पूरी तत्परता, लीनता से काम कर सके। उन्हें किसी भी प्रकार का व्यवधान न हो उलझन न आये। यह प्रयास करना चाहिए कि एक व्रती का व्रती-जीवन अच्छे से पले तो उनके आशीशों से तुम्हारी दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी और जीवन का कल्याण होगा।
किन्तु इसके दूसरे पहलू की बात भी मैं करना चाहता हूँ, व्रतियों को भी चाहिए कि लोगों की सुविधा-असुविधा का पूरा ख्याल रखें और उन्हें सहयोग करें। ‘सहयोग दो और सहयोग लो’ की नीति से अगर व्यक्ति चले तो कहीं कठिनाई नहीं होगी।
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