स्व संवेदन की डिग्री को मापने का मापदंड क्या है?
आपने स्व संवेदन को मापने का माप दंड पूछा है। अपना संवेदन हम खुद कर सकते हैं। लेकिन ये स्वसंवेदन भी कई तरीके का होता है। एक अशुद्ध स्व संवेदन और एक शुद्ध स्व संवेदन। अशुद्ध स्वसंवेदन तो हम चौबीस घंटे करते रहते हैं। हमारे अन्दर राग- द्वेष रूपी जो विकारी भाव होते हैं वो अपने आप को तदरूप अनुभव कराते हैं। कभी क्रोधी, कभी मानी, कभी मायावी, कभी लोभी, कभी रागी, कभी द्वेषी, कभी मोही। लेकिन शुद्ध स्व संवेदन केवल वीतराग महात्मा के जीवन में होता है। हर किसी के जीवन में सम्भव नहीं है। तो शुद्ध स्व संवेदन वे ही अनुभव में ला सकते हैं जिन्होंने वीतरागता को अंगीकार कर लिया है, जो मोक्ष मार्ग पर चल रहे हैं।
तो मैं ये कहूँगा कि स्व संवेदन को मापने का पैमाना यदि कुछ है, तो वो वीतराग चारित्र है। जहाँ वीतराग चरित्र होगा, वहीं वीतराग स्वसंवेदन भी होगा।
Leave a Reply