शासन-प्रशासन की नीतियाँ और नियम इस तरह हो गए हैं कि उनसे हमारी आस्थाओं पर चोट पहुँच रही है। जैसे, कोई राष्ट्रीय स्मारक है लेकिन पूजनीय स्थल है, वहाँ उन्होंने जूते-चप्पल को पहनने की आज्ञा दे दी, द्वार पर। हमने पुरातत्व विभाग को लिख कर पूछा “ऐसा क्यों?” तो उनका पत्र आया कि “यह नॉन लिविंग (non-living) राष्ट्रीय स्मारक है इसलिए हम इसकी आज्ञा देते हैं।” ऐसे ही शासन की नीतियाँ हैं- मछली पालन केंद्र, मुर्गी पालन केंद्र जबकि उनका ध्येय होता है मारने का! तो क्या शासन इस तरह से कर सकता है? कृपया जैन समाज को, अहिंसा प्रेमियों को मार्गदर्शन दें ताकि हम शासन-प्रशासन की नीतियों का विश्लेषण करके उनको बता सके?
कोई भी हमारा Monument (स्मारक) है उसे living (जीवित) और Non Living (अजीवित) स्मारक कहने का अधिकार पुरातत्व विभाग को नहीं है। जो हमारी श्रद्धा से जुड़ा है वो living (जीवित) ही नहीं, चिरंतन है, शाश्वत है और उसकी पवित्रता को बना के रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। इसके लिए समाज को एकजुट होना चाहिए, विरोध करना चाहिए।
मैं आप लोगों से पूछना चाहता हूँ, मैं तो कभी गया नहीं, ताज महल में आप लोग जाते हैं, क्या वहाँ जूते-चप्पल की अनुमति है?नही ना? पूज्य स्थलों की सुरक्षा करना सरकार की जिमेदारी है और आप लोग उसका विरोध कीजिये, पुरजोर विरोध कीजिए और वहाँ धरने पर बैठ जाइये और कहिये कि ‘आप इसका प्रतिबन्ध नहीं करेंगे तो हम उस चीज को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह हमारा पूजा स्थल है और पूजा स्थल की पवित्रता को बनाए रखना हमारा मौलिक अधिकार है। आप हमारी धार्मिक आस्था में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकते।’ इसके लिए पुरजोर विरोध करना चाहिए और जहाँ भी इस तरह के हमारी धार्मिक स्थल हों, जहाँ पर पूजा-अर्चना हो रही है, उस स्थल पर इस तरह की अपवित्रता हो, उसे कतई बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
जहाँ तक मछली पालन केंद्र, मुर्गी पालन केंद्र, एग फार्मिंग की बात है, यह बहुत गलत चीज है। हमें मारने के उद्देश्य से पालने को पालना नहीं कहना चाहिए। अब तो अंडों की खेती जैसे शब्द का प्रयोग किया जाने लगा, यह बड़ी चालबाजी भरे शब्द हैं जो हमारे समाज को भ्रमित करने का कुचक्र है, हमें इसका पूरी ताकत से विरोध करना चाहिए।
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