कूटनीतिक चालों से कैसे उबरें?

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शंका

आप से सुना है कि राजनीति में धर्म होने से संसार का कल्याण होता है। धर्म में राजनीति के होने से संसार का विनाश होता है। अगर कोई राजनेता धर्म के रास्ते पर चलता हो लेकिन राजनीतिक कूटनीति के कारण वह बदनामी के अन्धेरे में घिर जाये तो उसे कौन-सा रास्ता अपनाना चाहिए?

समाधान

कुछ मत करो! जीवन में आने वाले अवरोधों को चुनौती के रूप में स्वीकार करो। अपनी लगन, निष्ठा और समर्पण के बल पर उन्हें एक उपलब्धि का रूप दो। जीवन धन्य हो जायेगा। तुम चलो, आगे बढ़ो, तुम्हारे रास्ते में आने वाले अवरोध खुद पीछे हट जायेंगे। इनसे घबराने की जरूरत नहीं है। परिषह और उपसर्ग तो मुनिराजों के जीवन में भी आते हैं। और जो उन्हें सहता है वही आगे कुछ कर पाता है। इसलिए परिषहों को सहें। ये आते ही हैं। 

फूलों के साथ ही काँटे आते हैं। राजनीति में हमेशा कठिनाई होती है। फिर भी मैं यहीं कहता हूँ कि अच्छे लोगों के रहने से ही राजनीति अच्छी होती है। जहाँ तक धर्म और राजनीति का सवाल है मैं इतना ही कहूँगा कि धर्म में कभी राजनीति न आने पाये। राजनेता धर्म से जुड़ जाये तो कोई बात नहीं लेकिन राजनीति कभी धर्म से नहीं जुड़नी चाहिए। राजनीति में सदैव धर्म जुड़ा रहना चाहिए। राजनीति या राजनेता जब धर्म से जुड़ते हैं, तो रामायण की रचना होती है। और धर्म और धर्मनेता जब राजनीति से जुड़ते हैं तो महाभारत रच जाता है। भारत को रामायण की आवश्यकता है, महाभारत की नहीं।

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