शंका
श्रद्धा जब मंजिल की ओर उछल रही हो, विश्वास छलाँगे मार रहा हो, उस समय जब बाधाओं के कांटे पैर में चुभते हैं, अपनों के पत्थर रास्ते में आते हैं, उस समय हमारा मन क्या कहता है और हमें क्या करना चाहिए?
समाधान
जब मनुष्य अपने लक्ष्य को ले करके चलता है, श्रद्धा और विश्वास के साथ चलता है, तो रास्ते के कांटें उन्हें कभी रोक नहीं पाते हैं और लक्ष्य की ओर समर्पित व्यक्ति रास्ते के कांटों को देखता ही नहीं है। हमें आगे बढ़ना है, आगे बढ़ना है, आगे बढ़ना है।
“कदम रखा करता शूलों पर मुझे व्यथा से प्रीत है, विपदाओं में मुस्काना ही जीवन का संगीत है।”
ये लक्ष्य ले करके चलें, राह में कांटे आएँगे लेकिन हम उन कांटों को रौंदते हुए आगे बढ़ें और ये तय करें,
“तू न रुकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न झुकेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ”
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