माता पिता का ऋण किस प्रकार चुकाया जा सकता है?

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शंका

अन्य धर्मों में पितृ ऋण से उऋण होने का उल्लेख है, तो क्या अपने जैन दर्शन में भी इसका उल्लेख है? और यदि है, तो मुनि महाराज और जिनके पुत्रियाँ हैं उनके लिए क्या उपाय है?

समाधान

हमारे यहाँ लिखा है; तीन के उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकते, वो है माता-पिता, जीव का दाता और गुरु! इनका जो उपकार होता है उसे चुका नहीं सकते। फिर भी माता-पिता के ऋण से उऋण होने के कुछ उपाय बताये हैं; १- अपनी सेवा से उनको सदैव प्रसन्न रखें, २- उनके आत्मा की उन्नति में सदैव सहायक बनें; ३- अपने आचरण और विचार से उनके गौरव को बढ़ा कर अपने माता-पिता के उपकार चुका सकते हैं। जैन शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा कि जो पुत्रहीन हैं उनका कोई उद्धार नहीं हो सकता। आप इस बात को दिमाग से निकालिये। जैन परम्परा में पुत्र और पुत्री में कोई फर्क नहीं है, उन्हें वही स्थान दिया है। इस तरह की विचारधारा से समाज को बहुत नुकसान हुआ है, ऐसी विचारधारा बिल्कुल भी प्रोत्साहित करने योग्य नहीं है। जो व्यक्ति मुनि बन जाते हैं या साधु बनते है, उनके माँ-बाप का गौरव बढ़ जाता है। उनके साधु बनने से उनके माता-पिता जगत पूज्य हो जाते हैं, यही उनके ऋण चुकाने का सबसे अच्छा तरीका है।

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