लॉकडाउन के समय कैसे करें धर्म ध्यान?

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शंका

कोरोना वायरस आपदा से मुक्ति के लिए आपने आज सामूहिक जाप कराया। आज जनता कर्फ्यू होने के कारण सपरिवार घर पर जिनवाणी चैनल के माध्यम से जाप के साथ दशांग धूप-कपूर की आहुति देने से वातावरण इतना शुद्ध हुआ कि घर व अड़ोस- पड़ोस में उजाले की किरण निखर आई। जब हम जाप व आहुति से जिंदगी में उजाला कर सकते हैं,तो जाप व आहुति से कोरोना वायरस को क्यों नहीं भगा सकते हैं? फिर भी इंसान धर्म की शक्ति को क्यों नहीं समझता? ऐसे आपदा के समय इनको धर्म और आहुति से कैसे जोड़े?

समाधान

सबसे पहली बात तो आज प्रातः काल की जो बात है, मैंने एक नया प्रयोग किया। यह सोच कर कि प्रवचन तो सबको रोज सुनने को मिलता है। पर इस समय लोगों की मनःस्थति भयाक्रांत है और सबसे पहले लोगों के मन का भय दूर करना चाहिए। 

लोगों के मन का भय दूर हो, पूरे विश्व में मंगलमय वातावरण बने इस मनोभाव से आज हमने शांति मन्त्र की जाप कराई। और आप लोगों से दशांग धूप की आहुति देने की बात की क्योंकि उससे वातावरण शुद्ध होता है और आपका कॉन्फिडेंस भी बिल्ड-अप होगा। इस मनोभाव से हमने किया और धर्म तो हमारे लिए शरण है ही। हमें अच्छे से धर्म का आलम्बन लेना चाहिए। और ये अब नियमित चलेगा। जब तक ये कहर है, ये शान्त नहीं होता हमने तय किया है, सुबह के प्रवचन की जगह आप लोगों को शांति मन्त्र की जाप और भावना योग कराया जाएगा। धूप शुद्ध हो, दशांग धूप हो आप उसका प्रयोग करें। और घी गाय का घी हो, शुद्ध घी हो तो उसका इस्तेमाल करें। कदाचित आपको शुद्ध  घी न मिले तो आप नारियल तेल का प्रयोग कर सकते हैं। पर कोशिश करें गाय के घी का और आम की लकड़ी का प्रयोग करने का। ये वातावरण के विषाणुओं को दूर करते हैं। इससे आपके आस-पास का परिवेश शुद्ध होगा, शान्त होगा, मन शान्त होगा; और भावना योग आपकी इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाएगा, इम्युनिटी को मजबूत करेगा और आपके चारों तरफ एक सुरक्षा का घेरा देगा। ताकि आप इस प्रकार के वायरस के दुष्प्रभाव से अपने आप को बचा सके। तो ये क्रम नियमित चलेगा। 

जहाँ तक धर्म की शरण की बात है, धर्म की शरण सबको लेना चाहिए। लेकिन इस आपदा को देखते हुए हमें धर्म का तरीका बदल देना चाहिए। आज बहुत लोगों के सवाल आए हैं, हो सकता है आगे सवाल आते रहेंगे। अभी मेरे पास कलकत्ता से अजित सेठी का मैसेज आया, कल से पश्चिम बंगाल को लॉकडाउन किया जा रहा है। दिल्ली में भी लॉकडाउन है। पूरे भारत में लगभग लॉकडाउन है। मैं तो कहता हूँँ वर्तमान त्रासदी को रोकने के लिए जितनी जल्दी सम्भव हो लॉकडाउन करना चाहिए। क्योंकि इस त्रासदी से बचने का और कोई उपाय नहीं है। सवाल उनलोगों का है जिनका नित्य देव दर्शन का, पूजन का, अभिषेक का नियम है, वो क्या करें? ऐसे समय में प्रतीकात्मक पूजन करें। शासन से अगर अनुमति मिलती है, तो मन्दिर जा कर एक-आध व्यक्ति अभिषेक कर ले, बाकी लोग अभिषेक देख लें, अर्घ चढ़ा लें और अपनी क्रियाएँ धर्म की घर में कर लें। घर से अपनी धार्मिक क्रियाओं को संपन्न कर लें। जैसे कोई व्रती है, वो बीमार पड़ता है, उसकी अस्पताल में सर्जरी होती है और दस दिन तक अस्पताल में भर्ती रहता है। क्या उसका देव दर्शन हो पाता है? क्या उसका अभिषेक, पूजन हो पाता है? पर उसके बाद भी वो अपना इलाज कराता है, अपना भोजन-पानी करता है, कि नहीं करता है? बाद में प्रायश्चित्त लेता है। तो ये पूरी की पूरी मानवता पर एक त्रासदी आ पड़ी है। इस समय हमें लकीर का फकीर नहीं बनना चाहिए। इसे स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि ये जो बीमारी है, ये जो वायरस है, इस वायरस को किसी भी वैक्सीन से नष्ट नहीं किया जा सकता। इस वायरस को मिटाने का एक ही उपाय है, सोशल डिस्टेंस मेंटेन करना, दूरी रखना।

आप लोगों को मैं एक सलाह देना चाहता हूँ। दूरी रखिए, संयम और संकल्प का पाठ पढ़िए, अपनी बाउंड्री को मत खोइए, घरों से निकलना बंद कीजिए। ये थोड़े का परिणाम बहुत भयानक होता है। अभी मेरे पास पूरा डिटेल नीटू ने ला करके दिया है कि पहले हफ्ते में इटली में कुल तीन केस थे, दूसरे में एक सौ बावन हुए, तीसरे में दस सौ छत्तीस, चौथे में छः हजार तीन सौ बासठ और पाँचवें हफ्ते में इक्कीस हज़ार एक सौ सत्तावन लोग इस कोरोना से संक्रमित हो गए। सात सौ तेरह लोगों की मृत्यु आज हुई है। मुझे अभी बताया गया कि इटली के प्रधानमंत्री बिलख-बिलख के रो रहे थे। ये लापरवाही का परिणाम है। ईरान में पहले हफ्ते में कुल दो थे, दूसरे हफ्ते में तैंतालीस हुए, तीसरे हफ्ते में दो सौ पैंतालीस, चौथे हफ्ते में चार हज़ार सात सौ सैंतालीस और पाँचवे हफ्ते में बारह हज़ार सात सौ उनतीस हो गए। अब भारत है पहले हफ्ते में तीन, दूसरे हफ्ते में चौबीस, तीसरे हफ्ते में दो सौ अठावन। अगर यहाँ नहीं संभला गया तो चौथे और पाँचवें हफ्ते में तो त्राहि-त्राहि मच जाएगी। 

मुझे बताया गया कि ये इस प्रकार का वायरस है जो हवा और वायु से है, धूप से नहीं है। ये केवल मानव के द्वारा फैल रहा है। एक दूसरे के संसर्ग से फैल रहा है। जो समान्य वायरस होता है वो पाँच-सात घंटे में खत्म हो जाता है, इसका असर चौबीस घंटे तक देखने को मिलता है। कोई व्यक्ति किसी गाड़ी की हैंडल को पकड़ा है और वो वायरस से संक्रमित है, तो भी उसका असर होगा, किसी सीट पर बैठा है, तो भी उसका असर होगा। मन्दिर में कोई व्यक्ति आ रहा है, वहाँ पूजन करके गया और वो संक्रमित व्यक्ति है उसके बाद वहाँ पर कोई बैठेगा चौबीस घंटे तक तो वो भी उससे प्रभावित हो सकता है। तो ऐसी स्थिति में हमें बहुत दृढ़ता का पालन करना चाहिए। हमेशा ध्यान में रखिये, आपको जो हिदायतें दी जा रही हैं वो आपकी लक्ष्मण रेखा है। और लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन का परिणाम सबको समझना चाहिए। सीता ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया, सीता को अपना सब कुछ खोना पड़ा। सीता को रावण हर लिया। आज आप लक्ष्मण रेखा को खोओगे, आप अपना सब कुछ खो दोगे। इसलिए मैं सभी से ये कहना चाहता हूँ, इस आपत्कालिक स्थिति में आप अपने आपको अपने हिसाब से सयंत कीजिए, जिसकी आज घोर आवश्यकता है। 

धार्मिक क्रियाएँ कुछ हम घर में भी कर सकते हैं। लेकिन आप अपने मन पर सयंम न रख कर, लगाम न रख कर, आवागमन करेंगे, आएँगे, जाएँगे तो आप इस बीमारी को फैलाने में भूमिका बनाएँगे। और वो पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप होगा। आप सोच सकते हैं सरकार कितनी गम्भीर हैं। सारी ट्रेनें रोक दी गई, सारी फ्लाइटें रोक दी गयें, शासकीय, अशासकीय कार्यालयों को बंद कर दिया गया। कभी हमनें तो हौस संभालने के बाद आज तक ऐसी स्थिति नहीं देखी। तो ये बड़ी त्रासदी है, इसको समझना चाहिए। प्रधानमंत्री ने जो संदेश दिया है उसका दृढ़ता से अनुपालन करना चाहिए। अगर आपलोग इसमें ध्यान नहीं देंगे तो बहुत भयावह स्थिति बन सकती है। इसलिए मैं सभी से कहता हूँ अभी संयम रखने का समय है, शांति रखने का समय है। आप घर में रहिए, घर में बैठकर जितना बन सके धर्म, ध्यान कीजिए, लोकमंगल की भावना भाइये। हमने इसीलिए सुबह के प्रवचन के जगह शांति मन्त्र का जाप अनुष्ठान और भावना योग कराया। ताकि आप अपने आप को स्ट्रांग बनाइए। 

हम कोरोना से डर नहीं रहें है, पर सावधान होना है। यही इसका इलाज है, इसका और कोई इलाज नहीं। मेरा कई विशेषज्ञों से इस विषय पर बातचीत हुई। उनका कहना है, अगर लोग आवागमन बंद नहीं करेंगे तो ये पता नहीं कितना विकराल रूप ले लेगा। इसलिए सबको आत्मसयंम रखना चाहिए। सागर वालों से भी बोलता हूँ, आज तो जनता कर्फ्यू थी इसलिए आप थोड़े लोग नहीं आए। लेकिन कल से आप दिखना नहीं चाहिए। हमारे दरवाजे सबके लिए अभी बंद हैं। भूल जाओ महाराज सागर में हैं। जो यहाँ आ गए वो परमानेंट रहो, स्वागत है। आवागमन का काम अब नहीं होना चाहिए। इसको रोकना है और आप न तो किसी मेहमान को बुलाओ न किसी के घर जाकर मेहमान बनो। अभी अपने आपको अपने में सीमित रखो। ये समय की बड़ी आवश्यकता है। अगर पंद्रह दिन बीस दिन लोगों ने संयम रख लिया और इस रेट को बढ़ने से हमनें बचा लिया। तो समझ लेना हमने बहुत बड़ा गढ़ जीत लिया है, रण जीत लिया है। 

हमें समझना चाहिए उपसर्ग है एक प्रकार का। ये त्रासदी और विभीषिका के रूप में आई है। अन्दर से वेदना होती है, हम क्या कर सकते हैं। ये सबका सामूहिक पापोदय है। एक तरफ देख के लगता है कि हमारा मन्दिर भी छूट गया। लेकिन ध्यान रखना मन्दिर भले छूट जाए भगवान कभी नहीं छूट सकतें, भगवान हमारे हृदय में हैं। उनको अपने अन्दर बसा के रखो और उसके अनुरूप इस आपत्कालिक धर्म का निर्वाह करिए। ताकि आप अपने जीवन को सलामती से जी सके। 

सभी महानगरों के लोगों को और अन्य-अन्य स्थानों के लोगों को मैं यही संदेश देना चाहता हूँ, वहाँ की व्यवस्था के अनुरूप यदि देव दर्शन की सुलभता आपको मिले तो आप देव दर्शन कीजिए, नहीं तो भावना भाइये। मैं चैनल वालों से कहता हूँ, एक सुबह के समय लोगों को ऑनलाइन अभिषेक, पूजन तो जरूर दिखा दें। ये व्यवस्था होनी चाहिए। सभी चैनलों के माध्यम से ये रूटीन में होता ही है, लोग वो कर लें। हालाँकि, मैं इसे राजमार्ग नहीं बनाता लेकिन ये आपत्कालिक धर्म है। अगर आपको वहाँ प्रशासन अनुमति देता है तब तो आप मन्दिर जा करके विधि पूर्वक अपना दर्शन, पूजन, वन्दन कीजिए। लेकिन आपके आवागमन से इस संक्रमण को फैलने की सम्भावना दिखती है, तो मैं तो आपको ये सलाह दूँगा, आपके देव-दर्शन और पूजन से बड़ी पूजा इस संक्रमण को रोकना है, उसमें अपना योगदान देना है। ये आपकी बड़ी पूजा है। उसके प्रति आप सबको ध्यान देना चाहिए। इस पर बहुत गम्भीरता रखनी चाहिए। 

मुझे अभी जानकारी मिली ब्रह्मचारियों के माध्यम से, गुरुदेव ने समाज को संयम का पाठ पढ़ाने के लिए, एक संदेश देने के लिए उन्होंने मुनियों से भी पाँव छूवाना बंद कर दिया। डर के नहीं, केवल इसलिए कि मैं इतना करूँगा तो लोग कुछ करेंगे। पैर छूवाना बंद कर दिया और कहा दूर रहो, और तुम दूर रह करके लोगों को दूर रहने का संदेश दो। आपको भी सीखना चाहिए। इस त्रासदी के दूर करने के लिए सबको योगदान देना चाहिए। अपने मन पर संयम रख करके चलना चाहिए। मुझे आशा है, आप लोग इस पर बहुत ध्यान देंगे और इस त्रासदी को दूर करने में सब लोग मिलकर हाथ बिठायें।

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