दीपावली की पूजा कैसे करें?
दीपावली की पूजा! वास्तविकता में हमारी जो भी पूजा आराधना होती है वह देवस्थान में होती है, भगवान के मंदिर में होती है। पर दीपावली एक लोक पर्व भी है। लोक पर्व होने के नाते लोक में सब लोग अपने अपने घर में ज्योति जलाते हैं और उस दिन बही खाते आदि की पूजा करते हैं। पूजा क्या करते हैं, यह पूजा नहीं है; यह बही खाते का सत्कार है और नीति न्याय से अपने कारोबार को करने के संकल्प की अभिव्यक्ति है। आपने कभी विचार किया? भारतीय परंपरा की बारीकियों को समझिए। आप बही में क्या लिखते हैं? “शुभ लाभ!” क्यों लिखते हैं? “लाभ शुभ” क्यों नहीं लिखते? हमारे यहाँ लाभ को ‘शुभ’ नहीं, ‘शुभ’ मंगल, कल्याण, श्रेष्ठता का प्रतीक है। हम उसी में अपना लाभ मानते हैं जिसमें कल्याण हो, क्षेम हो, मंगल हो, श्रेष्ठता हो। तो इस भाव से शुभ-लाभ लिखा जाता है। उसी प्रतिबद्धता को प्रकट करने के लिए एक शुद्धि आदि की जाती है। हम कोई भी माँगलिक कार्य करते हैं तो भगवान का नाम लेकर के करते हैं। तो उस भगवान का नाम स्मरण करें, मंगलाष्टक पढे और शेषाक्षत को चारों तरफ छिड़कें, दिक् वंदन करें, परमेष्ठी की आराधना करें! क्योंकि भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, तो भगवान महावीर की आराधना कर लें; गौतम स्वामी को उस दिन शाम को केवल ज्ञान हुआ, तो गौतम स्वामी की पूजा या सरस्वती की पूजा कर लें। यह हमारी मूलभूत परिपाटी थी।
लेकिन दीपावली बनियों का त्यौहार हो गया। लोक धारणा यह हो गयी कि दीपावली के दिन पूजा अनुष्ठान करो, लक्ष्मी जी प्रसन्न रहेगी और घर में बंपर पैसा बरसेगा। यह लोक ख्याति है दीपावली के दिन में। जो लोग व्यापारी हैं, व्यापारी वर्ग ज्यादातर अर्थ से जुड़ा होता है, तो उसका पहला धर्म पैसा कमाना होता है, तो उसके चक्कर में वह अनेक प्रकार के देवी-देवताओं की कल्पनाओं में जुड़ जाता है। और उन्ही की पूजा अर्चना करना उसने शुरू कर दिया यही गड़बड़ी हो जाती हैं। उसको संभालिए, इस तरह की आस्था मत रखिए। अगर किसी देवी की पूजा करने से धन संपन्नता होती है, तो जिस देवी की दुनिया के लोग पूजा नहीं करते उनको तो धन संपन्नता होनी ही नहीं चाहिए। विश्व के नंबर १० में कितने हैं जो लक्ष्मी पूजा करते हैं? इसकी वास्तविकता को समझो! यदि किसी देवी की पूजा आराधना से धन संपदा की प्राप्ति हो जाए तो दुकान बंद कर दो; उन्हीं की आराधना कर लो तुम्हारा घर भर जाएगा। ना भूतो ना भविष्यति!
तो दीपावली की पूजा आप इसी मनोभाव के साथ करें। दीपावली में मूल पूजा तो आप प्रातःकाल कर लें। शाम को आप ज्योति करें, प्रकाश करें कोई बुराई नहीं। रात्रि में पूजा मत करें। किसी मुहूर्त के चक्कर में मत पडें। सबसे उत्तम तो है मंदिर में लाडू चढ़ायें, उसके बाद आकर दुकान की पूजा कर लें। ध्यान रखना, तुम्हारी बरकत अनुकूल संयोग के होने पर होगी और अनुकूल संयोग पुण्य के उदय से बनेंगे। पूजा करने से नहीं बनेंगे। और पूजा करने से भी तब बनेंगे जब परमेष्ठी की पूजा करोगे, अन्योंकी नहीं।
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