नव देवताओं की वैयावृत्ति कैसे करें?

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शंका

अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिन धर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये नौ आराध्य हैं हमारे। हमें इनकी किस तरह वैयावृत्ति आदि करनी चाहिए?

समाधान

नौ देव हमारे आराध्य हैं, इसका आपने उल्लेख किया। इनकी सेवा वैय्यावृत्ति क्या है? हमारे यहाँ पंचपरमेष्ठी की पूजा आराधना आप करते हैं, ये उनकी वैय्यावृत्ति हैं। आचार्य, उपाध्याय, और साधु के लिए आप जो आहार आदि का दान देते हैं ये भी उनकी वैय्यावृत्ति है और पूजा भी। 

आचार्य कुन्दकुन्द ने और आचार्य समन्तभद्र ने वैय्यावृत्ति और पूजा दोनों को एक दूसरे की पर्याय माना है। तो आप किन्हीं को वैय्यावृत्ति कहते हैं, यानि आहार आदि का दान देते हैं तो वो भी पूजा है। और आचार्य कुन्दकुन्द तो कहते हैं कि ये दस प्रकार की वैय्यावृत्ति जो जिन भक्तिपरक है, ऐसी वैय्यावृत्ति करो। ये पूजा भक्ति का ही एक रूप है। 

अब रही अरहन्त और सिद्ध की बात तो वो क्रमशः समवसरण और सिद्धालय में विराजमान हैं। हम उनकी वंदना, भाव वंदना, उनके प्रति गुणानुराग, उनके प्रति अपनी भावविशुद्धि युक्त अनुराग प्रकट कर सकते हैं। यही उनके प्रति हमारी भक्ति है और यही उनकी वैय्यावृत्ति। 

जिनचैत्य, जिनचैत्यालय (जिनालय/मन्दिर) और जिनागम की वैय्यावृत्ति क्या है? चैत्यों का निर्माण करना, प्रतिमाओं को स्थापित करना, मन्दिरों का निर्माण करना और कराना जिससे युग युगान्तर तक जिन धर्म की प्रभावना होती रहे। उनका रख रखाव करना, धर्मायतनों की सेवा करना, उनको संरक्षण देना, उनकी पूजा अर्चना में विशेष सहयोग देना, उनके रख रखाव में संपूर्ण व्यवस्था और प्रबन्ध, उनके लिए भूमि भवन आदि का दान देना- ये सब जिनचैत्य, जिनचैत्यालय और जिन धर्म तथा जिनागम की प्रभावना है, जिनागम की वैय्यावृत्ति है। 

जिनागम की वैय्यावृत्ति में एक काम और भी आएगा। आगम की प्रभावना करना, धर्म मार्ग की प्रभावना करना, शास्त्रों को पढ़ना-पढ़ाना, उनका प्रकाशन करना, लोगों तक अधिक ज्ञान का प्रकाश फैलाना ये सब वैय्यावृत्ति है। कुल मिलाकर मैं आपसे कहूँ जिनधर्म की प्रभावना में जो-जो कार्य हैं वो सब वैय्यावृत्ति के अन्तर्गत आते हैं। जो जिनशासन की उन्नति का आधार है उन्हें वैय्यावृत्ति के अंग के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

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