कहा जाता है कि वैराग्य के पथ पर कोई if या but नहीं होता परन्तु इस पथ की कठिनाई को देखकर मन डांवाडोल हो जाता है, तो मन को कैसे संभाले और व्रतों के प्रति दृढ़ता कैसे लाएँ?
जो if-but में लगा रहता है उसके भीतर वैराग्य होता ही नहीं और जब तक वैराग्य नहीं है, तो मन डांवाडोल होगा ही। सच्चा वैराग्य जगा लो तो if-but भी ख़त्म होगा और यदि if-but ख़त्म होगा तो मन को समझाने का सवाल भी नहीं होगा। इसलिए अपने भीतर के वैराग्य को परखो, टटोलो। भावुकता में इस मार्ग में कोई नहीं निकल सकता। जिसके भीतर दृढ़ वैराग्य होता है वही इस मार्ग में कामयाब होता है। अपने भीतर झांक कर देखो कि मैं कहाँ हूँ? क्या मेरे भीतर इतनी दृढ़ता है? अगर दृढ़ता है, तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें नहीं रोक सकती, सर्वत्र राह मिलती है।
एक बात और जो लोग यह सोच कर के वैराग्य के रास्ते पर निकलना चाहते हैं कि संसार में झमेले हैं, मोक्षमार्ग में कोई परेशानी नहीं, वह व्यक्ति मोक्षमार्गी नहीं बन सकता। क्योंकि जो परेशानियों से घबरा करके निकलता है वह जिंदगी भर परेशान रहता है। यहाँ भी ढेर प्रकार की परेशानियाँ है। परेशानियों से घबराकर के आगे बढ़ने वाला सफल नहीं होता; परेशानियों को सामना करने के लिए तैयार होने वाला आगे बढ़ता है। अपने आपको तैयार करो। मैं मोक्षमार्ग में इसलिए नहीं निकलना चाहता कि मेरे सामने परेशानियाँ हैं, झमेले हैं और उधर झमेले नहीं। मैं मोक्षमार्ग को इसलिए अंगीकार करना चाहता हूँ कि यही एक मार्ग है जिसमें मैं अपने सारे झमेले से सलट सकता हूँ, झमेलों को खत्म कर सकता हूँ। बाहर के और भीतर के अपनी क्षमता के बल पर जीवन में आने वाली हर चुनौतियों का सामना करने की ताकत मुझे प्राप्त होती है। इसलिए मोक्ष-मार्ग पर लगा हूँ वह वैराग्य हृदय में लाओ।
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