पुलिस की नौकरी में कैसे करें अहिंसा का पालन?

150 150 admin
शंका

सिविल सेवा में मेरी 101 रेंक पर मेरी ये अपेक्षा है कि मुझे इंडियन पुलिस सर्विसिज़ मिलेगा, आई पी एस (IPS)। ये कहा जाता है कि हिंसा एक अनिवार्य हिस्सा है इस सर्विसिज़ का। गुरुदेव मुझे ये जानना था कि मैं किस तरह से जैन सिद्धान्त, अहिंसा का जो सिद्धान्त है जो हमें सिखाया जाता है, हम उसका कैसे पालन कर सकते है पुलिस सर्विसेज में रह के भी?

समाधान

बहुत अच्छी बात विशाखा जी ने की है, सबसे पहले तो मैं उनके इस प्रयास के लिए उन्हें आशीर्वाद देता हूँ और लोगों के लिए एक प्रेरणा है कि उन्होंने अपने जीवन की ये उपलब्धि पाँचवें प्रयास में की है और विवाह के उपरान्त की है, ये बात बहुत अच्छी है। विवाह उपरान्त ये तो निश्चित है, उनके ससुराल के लोगों का बड़ा सहयोगात्मक रुख रहा होगा। और ये बहुत अच्छी बात है और लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। अच्छी प्रतिभाओं को, वो कहीं भी हो, उसे उभरने का अवसर हमें जरूर देना चाहिए। 

जहाँ तक पुलिस सेवा में हिंसा को सर्विस का अनिवार्य हिस्सा मानने की बात आपने की है। देखिये हिंसा करना और हिंसा होने में बड़ा अन्तर है। पुलिस विभाग में जो हिंसा होती है वो रक्षा के निमित्त से की जाती है। लॉ एँड ऑर्डर को बनाए रखने के लिए की जाती है, जो कि प्रशासन का एक अंग है। ये एक प्रकार से विरोधी हिंसा है। और विरोधी हिंसा प्रतिरक्षात्मक कदम उठाने के लिहाज से होता है। इसलिए ये हिंसा गृहस्थ के लिए क्षम्य है। अगर आप देखें तो एक पुलिस की नौकरी या सैनिक की नौकरी, क्षात्र कर्म है। क्षात्र कर्म का काम है, पर की रक्षा करना। पुलिस हमारी रक्षा के लिए अपना काम करती है। पुलिस का काम आतंक फैलाना नहीं बल्कि आतंकियों से समाज को बचाना है। तो अगर आप आतंकियों से समाज को बचाने के लिए क्षेत्र में आगे आते हैं, तो ये हिंसा नहीं है बल्कि अहिंसा की प्रतिष्ठा को बनाए रखने का सत प्रयास है। इसलिए जैन दर्शन इसके लिए कहीं मना नहीं करता कि आप पुलिस की नौकरी न करें। हाँ, इतनी सलाह जरूर दूँगा कि पुलिस की नौकरी करना, पर वर्तमान में पुलिसिया रवैया की जो छवि है, उससे अपने आपको बचा के रखना। कहीं ऐसा न हो कि आपको लोगों की बददुआएँ मिलें। ये हमें ध्यान में रखना चाहिए। जनता कि सद्भावनाएँ जुटाना, वाह-वाही लेना, हाय मत लेना। बहुत सारे पुलिस अधिकारी ऐसे हैं, इसी कटनी में गौरव तिवारी एक एस पी हुए, जो हमारे रतलाम प्रवास में रतलाम के एस पी थें, अभी भी शायद वहीं पदस्थ हैं। वो एस पी होने के बाद इतना अच्छा प्रशासन दिए कि मुझे मालूम पड़ा जब उनका यहाँ से तबादला हुआ तो कटनी में स्ट्राइक हो गई कि एक ऐसे अधिकारी को हम नहीं खोना चाहते। विरोध हुआ कि इनका तबादला नहीं होना चाहिए। हम इनको यहीं रखना चाहते हैं। और बहुत अच्छे अधिकारी हैं। मेरे सम्पर्क में वो रहें हैं, मेरे पास अनेक बार आएँ हैं। तो मैं आपसे यही कहना चाहूँगा अगर पुलिस सेवा में जाने का अवसर मिलता है, घबराना नही, अपने आप को अन्दर से बोल्ड बनाओ और ऐसा प्रशासन दो जिसे लोग कभी भूले नहीं। महिलाओं में किरण बेदी, आशा गोपालन जैसी महिलाएँ हैं जो पुलिस अधीक्षक के पद में रहते हुए, पुलिस पदाधिकारी रहते हुए उन्होंने एक अलग पहचान बनाई। बिशाखा, तुम्हारे अन्दर भी वो क्षमता आ सकती है, वो स्थिति आ सकती है, उसे विकसित करो। इसलिए इस बात को लेकर मन में किसी भी प्रकार का संकोच, भय या चिन्ता हावी मत होने दो। जो कर्त्तव्य है, मुझे करना है। वो मुझे करना है, मैं करूँगी और सफल होऊँगी।

Share

Leave a Reply