आज के व्यस्त जीवन में धर्म-आराधन कैसे करें?

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शंका

आज के अर्थ-प्रधान युग में जीवन निर्वाह के लिए आधुनिक जीवन शैली के साथ तालमेल रखते हुए हम किस प्रकार धर्म आराधन कर सकते हैं?

समाधान

धर्म आराधन के लिए देशकाल की सीमायें कभी बाधक नहीं बनती है। बाधक बनती है हमारे अन्दर की निष्ठा की कमी, अन्दर की दुर्बलता, तो उस दुर्बलता को दूर कीजिए। मैं जानता हूँ कि आज के युग में बहुत सारे ऐसे बड़े-बड़े प्रोफेशनलस है जिनका जीवन बहुत व्यस्त है लेकिन इसके बाद भी अपनी व्यस्त जिंदगी रहने के उपरान्त भी वे अपना धर्म अनुकूल जीवन जी रहे हैं।

मेरे सम्पर्क में एक सज्जन हैं, बहुत बड़े उद्यमी हैं, उन्होंने बताया कि ‘मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ, रोज मन्दिर नहीं जा सकता, आप के प्रवचन सुनने की इच्छा रहती है, आ नहीं पाता, तो मैंने एक सिस्टम बना लिया। सुबह मॉर्निंग वॉक करना मेरे लिए जरूरी है। अपने मोबाइल में आपके बहुत सारे प्रवचन फीड किये हुए हैं, मॉर्निंग वाक करता हूँ तो मौन लेकर के करता हूँ, उतनी देर तक आप का प्रवचन सुनता रहता हूँ, आपका समागम हो जाता है। उस समय दिमाग बिल्कुल फ्रेश रहता है सारे जंजाल से बच जाता हूँ और दिन भर के लिए मेरी बैटरी चार्ज हो जाती है। घर से ऑफिस जाने में डेढ़ घंटा लगता है, मैं गाड़ी पर बैठता हूँ और अपने आप कुछ देर तो जाप करता हूँ, चलती गाड़ी में यद्यपि नहीं करना चाहिए लेकिन मैं क्या करूँ, मेरे पास उपाय नहीं और थोड़ा स्वाध्याय कर लेता हूँ, मेरा जाप और स्वाध्याय गाड़ी में हो जाता है।’ अब बताइए आपको कहाँ कठिनाई है? कितनी भी व्यस्तता हो! व्यस्तता बुराई नहीं है, जो व्यस्त होते हैं उनके पास समय का अभाव नहीं होता, समय अभाव उनके पास होता है जो अस्त-व्यस्त होते हैं। मैं तो कहता हूँ व्यस्त रहो, मस्त रहो, कोई दिक्कत की बात नहीं है।

दूसरी बात सबसे ज़्यादा जरूरी है प्राथमिकता, आपकी priority (प्राथमिकता) में क्या है? अगर आपकी priority में केवल पैसा कमाना है, आपकी top priority में केवल फैमिली है, आपकी top priority में अपना बिजनेस है, तो आपके लिए धर्म-कर्म के लिए समय ही नहीं निकलेगा। अगर आपकी top priority में धर्म है, धर्म ध्यान अगर आपकी top priority में है, आप अपने आप समय निकाल लेंगे, सौ काम छोड़कर पहले भगवान का नाम भजोगे, जाप करोगे, पाठ करोगे, धार्मिक क्रियायें करोगे, तब फिर आप अपने गोरखधंधे में उलझोगे। तो बन्धुओं प्राथमिकतायें ठीक बनाइए। तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता किसे है, किसको आप top priority में रखते हो? आपसे अगर हम पूछ रहे हैं दो में से एक को चुनो, धन को और धर्म को, किस को चुनोगे? ईमानदारी से बोलना। सब धन छोड़ो, धर्म के लिए आ जाओ… । एक नहीं आयेगा, बेईमानी का उत्तर मत दो। तुम सबने कह दिया ‘धर्म को चुनेंगे’, मैं कह रहा हूँ धर्म के लिए धन की जरूरत है, दो। कोई नहीं देने वाला, जबान से कहते हो हम धर्म को प्राथमिकता देते हैं। नहीं, इसको और गहरी बनाओ, अपनी निष्ठा जब गहराएगी, आपके जीवन का तब पथ प्रशस्त होगा।

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