बाहर पढ़ने वाले बच्चों को दुर्व्यसनों का शिकार होने से कैसे रोकें?

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शंका

मैं सी.ए. फाइनल में हूँ लेकिन अभी तक मुझे मेरे साथ पढ़ने वाले केवल १० विद्यार्थी ही ऐसे मिले हैं, जो शराब का नशा नहीं करते और हैरानी की बात यह है कि उनमें जैन विद्यार्थी भी हैं। कृपया आप उनको मार्गदर्शन प्रदान करें?

समाधान

एक तस्वीर इस भाई ने आपके बीच प्रकट की है और ऐसे बच्चों और बच्चियों से बातचीत करके आज अन्दर से लगता है कि समाज की जो तस्वीर प्रकट हो रही है, बड़ी वीभत्स, विकृत है। मैं जब बात करता हूँ, तो १० में से ९ के हालात ऐसे होते हैं और लड़कियों की भी हालत खराब है। माँ-बाप सोचते हैं कि हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रहे हैं पर बच्चे पढ़ाई के साथ जिस मौज-मस्ती के साथ जुड़ते हैं, वो उनके जीवन का सर्वनाश कर देती है। उपाय क्या है? क्या बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए भेजना बंद कर दिया जाए? यह कतई उचित नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है। तो क्या किया जाए? उच्च शिक्षा में भेजने के पहले उन्हें संकल्प बद्ध करके भेजा जाए। ताकि वे अपने जीवन को सुरक्षित रखें और उन्हें जाने से पहले अपने जीवन की सीमाएँ क्या है, ये समझाएँ, चाहे लड़के हो या लड़कियाँ। यौवनावस्था में इन्द्रियों का निग्रह करना बहुत कठिन होता है। यौवन अवस्था में इन्द्रियों का निग्रह करना कठिन होता है और जैसी संगति होती है, वैसे में संभाल पाना बहुत मुश्किल होता है। और जो बच्चे सादगी से रहते हैं, मर्यादा में जीते हैं आज उनको ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

मैं पूरे देश के लोगों से कहना चाहता हूँ कि समाज को चेतने की जरूरत है, सावधान होने की जरूरत है। हमें इस समाज की भावी पीढ़ी की नींव मजबूत करने की आवश्यकता है। अच्छे संस्कार दें, ऐसे बच्चे अगर संस्कारित होंगे तो दुनिया में कहीं भी चले जाएँगे, कभी पथ भ्रमित नहीं होगें। हमें बच्चे-बच्चियों के लिए वर्कशॉप देना चाहिए, उनको मोटिवेशन देना चाहिए ताकि वे अपने जीवन को ठीक ढंग से जी सकें और काजल की कोठरी से बेदाग निकल सकें।

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