आध्यात्मिक मार्ग में किस तरह आगे बढ़ सकते हैं?
आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ने के लिए दो स्तर है, पहला घर पर रहते हुए और दूसरा घर से आगे बढ़कर। मैं आप जैसे उम्र के लोगों को केंद्रित करके कहूँगा कि घर पर रहते हुए अब आप अपनी भूमिका को समेटिए। घर में बेटे-बहु काम करने में सक्षम होंगे; सब सम्भाल लिए होंगे, उन पर दायित्त्व सौंपियें और खुद को एक मार्गदर्शक की भूमिका तक सीमित कर दीजिए। जरुरत पड़ने पर मैं सलाह दे सकती/सकता हूँ। तुम्हें हमसे कोई जरूरत है, तो बोलो, हमें तुमसे कोई अपेक्षा नहीं। अब मेरी भूमिका मार्गदर्शक की है मार्ग निर्णायक की नहीं एक बात।
दूसरी बात अब अपने आप को घर का मालिक मानना बंद करो। मालकियत उनको सौपों, खुद को मेहमान की तरह रखना शुरू कर दो। यह आप लोग सोचना, बच्चे नहीं सोचे कि ‘यह तो चार दिन के मेहमान है’, नहीं तो गड़बड़ हो जाएगा। मालिक की तरह नहीं मेहमान की भाँति रहें। आप अपने समय को गोरख धंधे और दुनियादारी की बातों में न उलझा कर जितना बन सके धार्मिक कार्यों, पूजा, पाठ, उपासना और साधना में लगायें। अगर घर में रहते हुए ऐसा करते हैं तो जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। अपनी सम्पत्ति को अपने पास रखें और उसका सद्व्यय करते रहें। सन्तान को उतना ही देना जितना उनको चाहिए। अपनी जेब खाली मत करना। हमारे यहाँ दो ही रास्ता है, या तो दोनों जेब भरे रखो या जेब ही न रखों। जेब है, तो भरे रहना चाहिए और नहीं तो बिना जेब के रहो जीवन में आनन्द ही आनन्द है। यह दोनों स्थितियों को ध्यान में रखकर के चलेंगे तो आगे बढ़ सकोगे। अनासक्ति के साथ, संयम के साथ जीवन के क्रम को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। अपने खानपान में यथासम्भव संयम लायें, प्रवृत्तियों को संयत रखें, रात्रि में चारों प्रकार के आहार का परित्याग करें, सल्लेखना की भावना भायें, समय पर व्रत-उपवास भी करते रहें। यदि ऐसा करेंगे तो आत्म -कल्याण का रास्ता प्रशस्त होगा। अगर इस सब को पूरा कर चुके तो फिर किसी सद्गुरु की शरण पकड़े और उनके पीछे लग कर अपने जीवन को आगे बढ़ाएँ।
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