अपने मन के विचारों को अशुभ से कैसे बचाएँ?
मन को अशुभ से कैसे बचाएँ? बस एक ही उपाय है मन का स्वभाव है कहीं न कहीं लगने का। मन को आलम्बन चाहिए। मन को आप अशुभ से बचाना चाहते हो तो शुभ में लगा दो। शुभ में नहीं लगाएंगे तो अशुभ में लगेगा। ये शैतान है। एक आदमी ने एक शैतान को सिद्ध कर लिया और शैतान को सिद्ध किया तो आकर बोला कि ‘मुझ को काम बताओ।’ जो काम बताए, तो फिर खड़ा’ बोला – ‘काम बताओ, नहीं तो तुम्हें ही खा जाऊँगा।’ अब आदमी बड़ा परेशान। छोटा-बड़ा जो भी काम बताए तो वो तुरंत काम करे, और वापस आ जाए।
एक दिन उसने अपने दार्शनिक मित्र से पूछा कि ये शैतान बड़ा परेशान करता है, इससे बचने का कोई उपाय बताओ।’ उसने कहा – ‘कुछ नहीं एक काम करो।’ ‘क्या?’ ‘घर में एक सीढ़ी रख लो और सीढ़ी रखकर के उससे कहो कि तुम इस पर चढ़ो और उतरो। चढ़ो और उतरो……। तुम चढ़ते -उतरते रहो, मुझे जब कोई काम होगा तो मैं बुला लूँगा।’ उसने शैतान को चढ़ने-उतरने में लगा दिया तो वो बड़ा निश्चिंत हो गया। ये मन बड़ा शैतान है, इसको कोई अच्छे काम में लगाएं । चढ़ने-उतरने में लगा दो, नहीं तो वो आपको खा जायेगा। तो मन को शुभ में लगाना जरूरी है ताकि आप अपने आप को अशुभ से बचा सकें।
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