आत्म-ध्यान के पूर्व आत्मा के स्वरूप को कैसे पहचानें?

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शंका

आत्म-ध्यान के पूर्व आत्मा के स्वरूप को कैसे पहचानें?

समाधान

ध्यान से पूर्व होती है भावना! बार-बार आत्मा की भावना भायें- “मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ, शुद्धोहम्, बुद्धोहम, निरंजनोहम्, अमूर्त स्वभावोहम्, इन्द्रियातीतोहम्, देहातीतोहम्, कर्मरहितोहम् हूँ, रागरहितोहम्, द्वेषरहितोहम्”- हम इस तरह शुभ भावना को भायें और अन्दर ही अन्दर वैसी ही इमेज (छवि) हो, हमारी इमैजिनेशन (कल्पना) से आत्मा की छवि विकसित होगी और जब हम अपने सबकोंशियस (अवचेतन) मन में आत्मा के स्वरूप की बार-बार फीडिंग देंगे तो वह फीडिंग धीरे-धीरे हमारे सबकोंशियस (अवचेतन) का स्थाई अंग बन जाएगी। जब हम इसे स्थाई अंग बना लेंगे तो – “मैं रागी हूँ, द्वेषी हूँ, मोही हूँ”- यह हमारे भीतर की परिणति, जिसके फलस्वरूप हम अपने आप को राजा-रंक, सुखी-दुखी, अमीर-गरीब के रूप में हम बार-बार अनुभव करते हैं, वो अनुभव घटेगा और मैं शुद्ध आत्मा हूँ, इसमें स्थिरता ला पायेंगे।

आत्मध्यान से आत्मा की भावना है। आत्मा की भावना को भाने के लिए हमें शास्त्रों में जो आत्मा का स्वरूप बताया है उसको बार-बार मनन में लाने की आवश्यकता है। एक शिष्य को आत्मा के ध्यान की बात पर जब गुरु ने कहा – “आत्मा का ध्यान करो” तो शिष्य ने कहा “गुरुदेव! मैंने आत्मा को तो देखा ही नहीं, आत्मा का ध्यान कैसे करूँ?” गुरु ने कहा – तुमने भैंस को देखा? “हाँ, भैंस को देखा है।” “जा सामने गुफा में चला जा और तीन दिन तक भैंस का ध्यान करना।”-गुरु बोले। वो भैंस का ध्यान करने के लिए बैठा, “महिषोहम, महिषोहम, महिषोहम” और अपने आप को भैंस रूप अनुभव करने लगा। ३ दिन व्यतीत हो गए। गुरु ने कहा कि “तीन दिन हो गये बाहर निकल जा।” बोला – “गुरुदेव बाहर कैसे निकलूँ, गुफा का द्वार छोटा है और मेरे सींग बड़े हैं, बाहर नहीं निकल पा रहा हूँ, मेरे सींग अटक गए।” गुरुदेव बोले – “कोई सींग नहीं, कोई भैंस नहीं, तू तो इंसान है, बाहर आजा।” बाहर आने के बाद उसने चरण पकड़ लिये, बोला “गुरुदेव मैं कैसे भूल गया, इंसान होने के बाद भी “मैं भैंस हूँ, मैं भैंस हूँ” का ध्यान करते-करते भैंस कैसे बन गया।” गुरु ने समझाया “जब तू भैंस का ध्यान करते- करते अपने आपको भैंस रूप अनुभव कर सकता है, तो जिस दिन तू आत्मा का ध्यान करेगा, अपने आपको आत्मा रूप मानना शुरू कर देगा।” इसलिए उस आत्म रूप अनुभव के लिए बार-बार आत्मा की भावना भाना आवश्यक है।

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