आधुनिक परिवेश में रहकर भी कैसे जैन धर्म दर्शन विचारों से संस्कारित बनी रहूँ, कृपया उपाय बताइए?
रिया कासलीवाल
जैन धर्म आधुनिक बनने का कभी निषेध नहीं करता बल्कि मनुष्य को नित नूतन और आधुनिक बनने की प्रेरणा देता है। आधुनिक किसे बोलेंगे- आधुनिक, तुम्हारी दृष्टि में जो मॉडर्न हो, आधुनिक वो जिसके अच्छे कपड़े ब्रांडेड हो, अच्छे गैजेट्स हो, अच्छी गाड़ी में घूमता हो, अच्छे फैशन में जीता हो। गलत, आधुनिक यथार्थता वह है जो अपने आपको युग की धारा के अनुकूल बना सके, समय के अनुरूप ढाल सके, समय व परिस्थिति के अनुरूप जीने का अभ्यासी बना सके, सच्चे अर्थों में आधुनिक वो है। आधुनिक बनो, समय के अनुरूप जिओ लेकिन अपने आप में स्थिरता बनाए रखो। जैन धर्म हमेशा यही प्रेरणा देता है और इसके लिए एक ही उपाय हैं अपनी लिमिट और बाउंड्री का ख्याल रखो। तुम्हें जो करना है करो, जैन धर्म कभी निषेध नहीं करता, लोग जैन धर्म को बदनाम करते हैं कि जैन धर्म में यह छोड़ो, वह छोड़ो। जैन धर्म कुछ छोड़ने की बात ही नहीं करता है। जैन धर्म कहता है कि तुमको जो करना है सो करो पर एक बाउंड्री खींच कर रखो। हिंसा से बचो और मर्यादा की रक्षा करो। अगर हिंसा हो रही है वहाँ बच जाओ और मर्यादा का हनन हो रहा है, तो वहाँ से दूर हट जाओ। यह दो चीजें अपने जीवन में बरकरार रखोगे तो जीवन में कभी भी पतित नहीं होगे और जो इन दो चीजों का उल्लंघन करता है उसका जीवन कभी सुरक्षित नहीं होता है। तुम पढ़ाई कर रहे हो, इस प्रश्न के माध्यम से मैं तुम्हें और तुम्हारे जैसे सारे पढ़ने वाले युवक-युवतियों को अपना एक संदेश देना चाहता हूँ। अपनी लिमिट का सदैव ध्यान रखो, अपनी बाउंड्रीज का हमेशा ख्याल रखो, मेरी सीमा क्या है, मेरी बॉउन्डरी क्या है। ऐसा कोई काम न करो जिससे तुम्हारा जीवन कलंकित होता हो, ऐसा कोई काम न करो जिससे तुम्हारे परिवार पर आँच आती हो, माँ-बाप को नीचा देखना पड़ता है और ऐसा कोई काम मत करो जिससे तुम्हारा जीवन अपवित्र बनता हो। फिर तुम्हें जो करना है सो करो, खुली आजादी है।
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