मेरी माँ पहले बहुत धर्म ध्यान करती थीं लेकिन अब उनकी याददाश्त चली गयी। जब वह धर्म ध्यान करती थीं तब उनकी यह भावना रहती थी कि “मेरा समाधि मरण हो”। लेकिन अब उनकी याददाश्त चली गयी है। अब हम लोग किस प्रकार उनकी समाधि भावना को याद करवा सकते हैं?
कई बार ऐसा देखने को मिला है कि व्यक्ति की याददाशत चली गयी लेकिन होनहार अच्छी होने पर यादाश्त ठीक हो जाती है। मेरे पास एक ऐसा केस आया था जिसमें डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। उस व्यक्ति को घंटे दो घंटे का मेहमान बताया, परिवार के लोग मेरे पास में लेकर आये, मैंने उनसे बात की तो मति भ्रमात्मक की स्थिति थी, कुछ पूछूँ कुछ जवाब! कोई जवाब की स्थिति नहीं रही। मुझे लगा क्या होगा? मैंने कहा चलो भाई अस्पताल से बाहर लाओ मेरे बगल में रखो मैं देखता हूँ। आपको क्या बताऊँ? एक बजे मैंने बात उनसे की तो मेरे मन में थोड़ी निराशा थी और शाम को जब आचार्य भक्ति के बाद मैं उनसे मिलने गया और बातचीत की तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी सम्यकदृष्टि से बात कर रहा हूँ। मैंने पूछा क्या हाल है? उन्होंने कहा, “महाराज जी तन की हालत आप देख रहे हो और आत्मा तो निहाल है”। हमने कहा, “अच्छी बात है”। हमने कहा, “किसकी शरण में जाओगे”? उन्होंने कहा, “बाहर शरण में आप और भीतर में आत्मा”। हमने कहा, “क्या खाओगे”? उन्होंने कहा, “अनादिकाल से बहुत खाते आ रहे हैं महाराज जी, अब कुछ खाने की इच्छा नहीं है”। हमने कहा, “फिर भी तुम्हारी कोई इच्छा? तो उन्होंने कहा, “जो आपकी आज्ञा महाराज जी”, यह धारणा है। हताश मत हो, भावना भाओ और हो सकता है उनकी स्मृति फिर से जग जाये उस जाग्रत अवस्था में ही आगे की आराधना हो जाये।
Leave a Reply