कोरोना काल के उपरान्त भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा व दिशा क्या और कैसी रहनी संभावित है? अगले कितने वर्षों में हम फिर सामान्य दशा में आ पाएँगे? गुरुदेव कृपया मार्गदर्शन दें कर अनुग्रहीत करें।
मैं कोई ज्योतिषी तो हूँ नहीं और भविष्य दृष्टा भी नहीं हूँ। लेकिन जो कुछ मुझे दिख रहा है या समझ में आ रहा है उसके आधार पर, मैं ये कह सकता हूँ कि ये विभीषिका पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह तोड़ रही है, प्रभावित कर रही है, और उससे भारत भी प्रभावित होगा, इसमें कोई संशय नहीं। लेकिन भारत और भारत की व्यवस्थाओं को जितना मैंने समझा है और जाना है, उसे देखकर लगता है कि भारत में उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत और भारतीय लोगों की एक विशेषता है कि वे अपनी जीवनशैली परिस्थिति के अनुरूप बदल लेते हैं। जब-जब आर्थिक संकट आता है, हम खर्च पर कटौती कर लेते हैं। यदि आने वाले दिनों में लोग अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव लाएँ अनावश्यक खर्च और अपव्यय से बचें, तो इस आर्थिक क्षति की कुछ अंशों में भरपाई की जा सकती है।
दूसरा, जो नुकसान हुआ है उसका रोना रोने की जगह, हमें उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, उद्यम बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए और उसके लिए स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने भी कुछ दिन पहले ये कहा था कि अब हमें आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना है। भारत में इतनी बड़ी आबादी है। श्रम के लायक हाथों की कमी नहीं है। श्रम के साथ यदि पूँजी का सही नियोजन हो जाए तो अर्थव्यवस्था बहुत फलीभूत होती है, ऐसा कहा जाता है। तो उसके लिए मैं ये कहूँगा कि छोटे-छोटे रोजगारों को बढ़ावा दिया जाए और उसमें उत्पादकता को बढ़ाया जाए। हर व्यक्ति कुछ न कुछ रचनात्मक करे और हर भारतीय विशुद्ध भारतीय बन जाए। वो प्रण करले कि इस विषम स्थिति में मैं भारत में हूँ तो केवल भारत की चीजें ही खरीदूँगा, भारतीयों को प्रमुखता दूँगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हम ज़्यादा तवज्जो नहीं देंगे। भारतीय बाजार में केवल भारतीयता का सत्कार होने लगे तो भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होने में देर नहीं लगेगी।
मैंने सुना है कभी जापान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी तो जापानियों ने एक नारा दिया था, “Be Japanese, Buy Japanese”- जापानी बनो, जापानी खरीदो। मैं मानता हूँ आज शासकीय स्तर पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि बहुत सारी अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं, वैश्विक बन्धन हैं। लेकिन हर व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर तो ये कर ही सकता है और इसे करना ही चाहिए। एक जुनून आना चाहिए, लोगों की सोच बननी चाहिए। लोग एक दूसरे के साथ थोड़ा-थोड़ा सपोर्ट करना शुरू कर दें, मदद करना शुरू कर दें, तो काफी कुछ बन सकता है, बदल सकता है।
इस अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अभी-अभी मेरे मन में एक विचार और आ रहा है। हालाँकि, ये सरकार की नीति से जुड़ी हुई बात है पर ये मेरी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचा देनी चाहिए। इन पर विचार करना चाहिए। विगत दिनों देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अनेक उपाय किए गए, विगत वर्षों में और काला धन भी व्यवस्थित करने के अवसर दिए गए। पर अभी भी सुनने में आता है कि बहुत सारे लोगों के पास काला धन है। जिन लोगों के पास काला धन है, अघोषित सम्पत्ति है पहला तो मेरा उन्हें सुझाव है कि धन के प्रति ऐसी ग्रद्धता किस काम की? बहुत सारे लोग हैं जो करोड़ों के स्वामी थे, पूरा कुनबा चला गया, भारत में भी और भारत से बाहर भी। एक दिन सब छूट जाना है। धन के प्रति आसक्ति न रखो। ऐसे लोगों को उदारता का परिचय देना चाहिए और भारत में या भारत से बाहर जहाँ छिपा के रखी गई सम्पत्ति उसको उजागर करना चाहिए। क्यों न सरकार ऐसी नीति बनाकर उन्हें उजागर करने का अवसर दे, ताकि जो लोग सरकार से लुका-छिपी का खेल खेलते हुए अपने ऐसे धन को धन की आसक्ति में दबाए बैठे हैं, वो अपनी सम्पत्ति को घोषित करने का साहस कर सकें। उसका एक हिस्सा सरकार के कोष में जाए, एक हिस्सा उनके पास हो- ऐसी कोई नीति हो और नीति इस तरीके की हो कि सब लोग निर्भीक होकर अपना द्रव्य देश के खजाने में देने के लिए और अपनी सम्पत्ति को घोषित करने के लिए राजी हो जाए, तो मैं समझता हूँ आर्थिक संकट के इस दौर में एक बड़ा सहारा बन सकता है। अर्थव्यवस्था के जो जानकार हैं, जो इस पूरी विधि और व्यवस्था को जानते हैं, वे इस पर मन्थन करें, विचार करें। और यदि इस आपत्कालिक स्थिति में ये योजना देश हित में अनुकूल लगती है, तो लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए क्योंकि इसका फायदा अन्ततः देश और देश की जनता जनार्दन को होगा।
यदि ऐसा किया जाए तो मेरी बुद्धि कहती है, देश फिर इस संकट से बहुत आसानी से उबर जाएगा क्योंकि मृत पड़ा हुआ धन किसी काम का नहीं है। धन जब तरलता में बदलता है, लिक्विडिटी में आता है, तभी वो काम में आता है। तो ऐसे लोग जो किसी कारण से अपने धन को छिपाए बैठे हैं। वे अपने अपराध के कलंक को भी धो पाएँगे और देश भी आगे बढ़े, वे अपनी देशभक्ति का परिचय दे पाएँगे। सरकार यदि ऐसी किसी नीति पर विचार करेगी तो मैं समझता हूँ, ये बहुत अच्छा उपाय हो सकता है।
Leave a Reply