यदि बिना लाइटर या माचिस के किसी वस्तु से आग लगाई जा सकती है तो वह है चुगली! किसी सामान को इधर-उधर करने से अधिक पाप बातें इधर-उधर करने में पाप लगता है। हम चुगली करने वालों से कैसे बचें और क्या करें हम भी चुगली करने से बचें?
शिवानी जैन, भिंडर
चुगलखोरी एक बहुत बड़ा पाप है। हमारे शास्त्रों के अनुसार जो चुगली का कर्म करते हैं, वे तिर्यंच गति का बन्ध करते हैं, अशुभ नाम कर्म का बन्ध करते हैं, नीच गोत्र का बन्ध करते हैं, असाता वेदनीय का बन्ध करते हैं। यह -परवंचन की वृत्ति, अति संधान प्रियता, चुगलखोरी -बहुत बड़ी दुर्बलता है पर कुछ लोगों की आदत होती है। बुंदेलखंड में इसे कहते हैं- रायता फैलाना, इधर का उधर करना। आज की चालू भाषा में कहते हैं ‘नारदगिरी करना’, कुछ लोगों को भिड़ाने में बहुत आनन्द आता है, यह दुर्बलता है।
सबसे पहली बात तो आप अपने मन में संकल्प लो कि “मैं अपने जीवन में कभी किसी की चुगली नहीं करूँगा।” चुगली के स्वरूप को भी हमें ठीक ढंग से समझना चाहिए। चुगलखोरी के दो रूप लोगों के सामने आते हैं- एक तो किसी को भिड़ाने के उद्देश्य से एक-दूसरे के प्रति शिकायत करना; और एक किसी के हित की बुद्धि से किसी के बारे में कुछ बता देना! मान लो, कोई व्यक्ति मुझसे जुड़ा है और उसमें कोई दुर्बलता है, मान लो पति है, उसमें कोई बुरी आदत है, पत्नी की सुनता नहीं, परिवार की सुनता नहीं और वो आ कर मुझे बता दें कि “महाराज जी आप ही इसका उद्धार कर सकते हैं” तो वह चुगलखोरी नहीं है, एक शुभाशंसा है, क्योंकि उन्हें यह विश्वास है कि यह ताला यहीं खुलेगा। लेकिन वहीं दुराशय तब आ जाता है जब कोई इस भाव के साथ कहे कि “बहुत महाराज की आगे-पीछे घूमता है, असलियत बता दूँ, पोल खोल दूँ तो महाराज बाजू में बैठने भी नहीं देंगे।”यह है दुराशय! यदि दुराशय के साथ आप किसी की बात इधर-उधर करते हैं तो ये महापाप है। जीवन में कभी ऐसा नहीं करना, प्रतिज्ञा के साथ बन्ध जाना।
फिर चुगली सुनना भी मत, कुछ लोग ऐसे होते जो यहाँ-वहाँ की बहुत करते हैं। मैं तो आपसे कहता हूँ जो दूसरों की बुराई तुम्हारे पास आकर करता है, खासकर दूसरे के घर की बुराई, उससे सुरक्षित दूरी रखना, सावधान हो जाना क्योंकि यह बीमारी है। वह दूसरे की बुराई तुम्हें सुनाएगा, तुम्हारी बुराई दूसरे के पास जाकर करेगा। एकदम सुरक्षित दूरी रखना, ये प्रवृत्ति अच्छी नहीं है।
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